बुधवार, 31 अगस्त 2011

मिथिलाक लोक पावनि चौरचन : कलंकित चान देखबाक परंपरा

एक सितंबर कए मिथिलाक लोकपावनि चौरचन (चौठ चान) अछि। सामान्‍यत: एहि दिन भारत वर्ष मे चंद्रमा क दर्शन नहि कैल जाइत अछि। कहल जाइत अछि जे एहि दिन चंद्रमाक दर्शन स अनेरे कलंक लगैत अछि। मुदा मिथिला मे चद्रमा देखबाक प्रचलन अछि। हाथ मे कोनो फल लेने लोग चान क बाट तकैत अछि आ ओकर दर्शनक बाद अन्‍न ग्रहण करैत अछि। एकर पाछु दू तीनटा लोक कथा अछि। कियो एहि दिन कए अहल्‍या स जोडैत अछि त किनको कहब अछि जे एहि दिन मिथिला नरेश कलंक स मुक्‍त भेल छथि। कारण जे हो मुदा मिथिला मे एहि दिन चान देखबाक परंपरा पुरान अछि। प्रस्‍तुत अछि एहि पावनि पर पवन कुमार मिश्रक इ आलेख।
- समदिया

समस्त विज्ञजन केँ विदित अछि जे समग्र विश्‍व मे भारत ज्ञान विज्ञान सँ महान तथा जगत्‌ गुरु कऽ उपाधि सँ मण्डित अछि । एतवे टा नहि भारत पूर्व काल मे “सोनाक चिड़िया” मानल जाइत छल एवं ब्रह्माण्डक परम शक्‍ति छल । भूलोकक कोन कथा अन्तरिक्ष लोक मे एतौका राजा शान्ति स्थापित करऽ लेल अपन भुज शक्‍तिक उपयोग करैत छलाह । एकर साक्ष्य अपन पौराणिक कथा ऐतिह्‌य प्रमाणक रुप मे स्थापित अछि ।
हमर पूर्वज जे आई ऋषि महर्षि नाम सँ जानल जायत छथि हुनक अनुसंधानपरक वेदान्त (उपनिषद्‍) एखनो अकाट्‍य अछि । हुनक कहब छनि काल (समय) एक अछि, अखण्ड अछि, व्यापक (सब ठाम व्याप्त) अछि । महाकवि कालिदास अभिज्ञान शकुन्तलाक मंगलाचरण मे “ये द्वे कालं विधतः” एहि वाक्य द्वारा ऋषि मत केँ स्थापित करैत छथि । जकर भाव अछि व्यवहारिक जगत्‌ मे समयक विभाग सूर्य आओर चन्द्रमा सँ होइछ ।
‘प्रश्नोपनिषद्‍’ मे ऋषिक मतानुसार परम सूक्ष्म तत्त्व “आत्मा” सूर्य छथि तथा सूक्ष्म गन्धादि स्थूल पृथ्वी आदि प्रकृति चन्द्र छथि । एहि दूनूक संयोग सँ जड़ चेतन केँ उत्पत्ति पालन आओर संहार होइछ ।
आत्यिमिक बौद्धिक उन्‍नति हेतु सूर्यक उपासना कैल जाइछ । जाहि सँ ज्ञान प्राप्त होइछ । ज्ञान छोट ओ पैघ नहि होइछ अपितु सब काल मे समान रहैछ एवं सतत ओ पूर्णताक बोध करवैछ । मुक्‍तिक साधन ज्ञान, आओर मुक्‍त पुरुष केँ साध्यो ज्ञाने अछि । सूर्य सदा सर्वदा एक समान रहैछ । ठीक एकरे विपरीत चन्द्र घटैत बढ़ैत रहैछ । ओ एक कलाक वृद्धि करैत शुक्ल पक्ष मे पूर्ण आओर एक-एक कलाक ह्रास करैत कृष्ण पक्ष मे विलीन भऽ जाय्त छाथि । सम्पत्सर रुप (समय) जे परमेश्‍वर जिनक प्रकृति रुप जे प्रतीक चन्द्र हुनक शुक्ल पक्ष रुप जे विभाग ओ प्राण कहवैछ प्राणक अर्थ भोक्‍ता । कृष्ण पक्ष भोग्य (क्षरण शील वस्तु) ।
विश्‍वक समस्त ज्योतिषी लोकनि जातकक जन्मपत्री मे सूर्य आओर चन्द्र केँ वलावल केँ अनुसार जातक केर आत्मबल तथा धनधान्य समृद्धिक विचार करैत छथिन्ह । वैज्ञानिक लोकनि अपना शोध मे पओलैन जे चन्द्रमाक पूर्णता आओर ह्रास्क प्रभाव विक्षिप्त (पागल) क विशिष्टता पर पड़ैछ । भारतीय दार्शनिक मनीषी “कोकं कस्त्वं कुत आयातः, का मे जनजी को तात:” अर्थात्‌ हम के छी, अहाँ के छी हमर माता के छथि तथा हमर पिता के छथि इत्यादि प्रश्नक उत्तर मे प्रत्यक्ष सूर्य के पिता (पुरुष) आओर चन्द्रमा के माता (स्त्री) क कल्पना कऽ अनवस्था दोष सं बचैत छथि ।
अपना देश मे खास कऽ हिन्दू समाज मे जे अवतारवादक कल्पना अछि ताहि मे सूर्य आओर चन्द्रक पूर्णावतार मे वर्णन व्यास्क पिता महर्षि पराशर अपन प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘वृद्ध पराशर’ मे करैत छथि । “रामोऽवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः” सृ. क्र. २६ अर्थात्‌ सूर्य राम रुप मे आओर चन्द्र कृष्ण रुप मे अवतार ग्रहण केलन्हि ।
ई दुनू युग पुरुष भारतीय संस्कृति-सभ्यता, आचार-विचार तथा जीवन दर्शनक मेरुद्ण्ड छथि आदर्श छथि । पौराणिक ग्रन्थ तथा काव्य ग्रन्थ केँ मान्य नायक छथि । कवि, कोविद, आलोचक, सभ्य विद्धत्‌ समाजक आदर्श छथि । सामान्यजन हुनका चरित केँ अपना जीवन मे उतारि ऐहिक जीवन के सुखी कऽ परलोक केँ सुन्दर बनाबऽ लेल प्रयत्‍नशील होईत छथि ।
एहि संसार मे दू प्रकारक मनुष्य वास करै छथि । एकटा प्रवृत्ति मार्गी (प्रेय मार्गी)- गृहस्थ दोसर निवृत्ति मार्गी योगी, सन्यासी । प्रवृत्ति मार्गी-गृहस्थ काञ्चन काया कामिनी चन्द्रमुखी प्रिया धर्मपत्‍नी सँ घर मे स्वर्ग सुख सँ उत्तम सुखक अनुभव करै छथि । ओहि मे कतहु बाधा होइत छनि तँ नरको सँ बदतर दुःख केँ अनुभव करै छथि ।
कर्मवादक सिद्धान्तक अनुसार सुख-दुःख सुकर्मक फल अछि ई भारतीय कर्मवादक सिद्धान्त विश्‍वक विद्धान स्वीकार करैत छथि । तकरा सँ छुटकाराक उपाय पूर्वज ऋषि-मुनि सुकर्म (पूजा-पाठ) भक्‍ति आओर ज्ञान सँ सम्वलित भऽ कऽ तदनुसार आचरणक आदेश करैत छथिन्ह ।
हम जे काज नहि केलहुँ ओकरो लेल यदि समाज हमरा दोष दिए, प्रत्यक्ष वा परोक्ष मे हमर निन्दा करय एहि दोष “लोक लाक्षना” क निवारण हेतु भादो शुक्ल पक्षक चतुर्थी चन्द्र के आओर ओहि काल मे गणेशक पूजाक उपदेश अछि ।
हिन्दू समाज मे श्री कृष्ण पूर्णावतार परम ब्रह्म परमेश्‍वर मानल छथि । महर्षि पराशर हुनका चन्द्रसँ अवतीर्ण मानैत छथिन्ह । हुनके सँ सम्बन्धित स्कन्दपुराण मे चन्द्रोपाख्यान शीर्षक सँ कथा वर्णित अछि जे निम्नलिखित अछि ।
नन्दिकेश्‍वर सनत्कुमार सँ कहैत छथिन्ह हे सनत कुमार ! यदि अहाँ अपन शुभक कामना करैत छी तऽ एकाग्रचित सँ चन्द्रोपाख्यान सुनू । पुरुष होथि वा नारी ओ भाद्र शुक्ल चतुर्थीक चन्द्र पूजा करथि । ताहि सँ हुनका मिथ्या कलंक तथा सब प्रकार केँ विघ्नक नाश हेतैन्ह । सनत्कुमार पुछलिन्ह हे ऋषिवर ! ई व्रत कोना पृथ्वी पर आएल से कहु । नन्दकेश्‍वर बजलाह-ई व्रत सर्व प्रथम जगत केर नाथ श्री कृष्ण पृथ्वी पर कैलाह । सनत्कुमार केँ आश्‍चर्य भेलैन्ह षड गुण ऐश्‍वर्य सं सम्पन्‍न सोलहो कला सँ पूर, सृष्टिक कर्त्ता धर्त्ता, ओ केना लोकनिन्दाक पात्र भेलाह । नन्दीकेश्‍वर कहैत छथिन्ह-हे सनत्कुमार । बलराम आओर कृष्ण वसुदेव क पुत्र भऽ पृथ्वी पर वास केलाह । ओ जरासन्धक भय सँ द्वारिका गेलाह ओतऽ विश्‍वकर्मा द्वारा अपन स्त्रीक लेल सोलह हजार तथा यादव सब केँ लेल छप्पन करोड़ घर केँ निर्माण कऽ वास केलाह । ओहि द्वारिका मे उग्र नाम केर यादव केँ दूटा बेटा छलैन्ह सतजित आओर प्रसेन । सतजित समुद्र तट पर जा अनन्य भक्‍ति सँ सूर्यक घोर तपस्या कऽ हुनका प्रसन्‍न केलाह । प्रसन्‍न सूर्य प्रगट भऽ वरदान माँगूऽ कहलथिन्ह सतजित हुनका सँ स्यमन्तक मणिक याचना कयलन्हि । सूर्य मणि दैत कहलथिन्ह हे सतजित ! एकरा पवित्रता पूर्वक धारण करव, अन्यथा अनिष्ट होएत । सतजित ओ मणि लऽ नगर मे प्रवेश करैत विचारऽ लगलाह ई मणि देखि कृष्ण मांगि नहि लेथि । ओ ई मणि अपन भाई प्रसेन के देलथिन्ह । एक दिन प्रंसेन श्री कृष्ण के संग शिकार खेलऽ लेल जंगल गेलाह । जंगल मे ओ पछुआ गेलाह । सिंह हुनका मारि मणि लऽ क चलल तऽ ओकरा जाम्बवान्‌ भालू मारि देलथिन्ह । जाम्बवान्‌ ओ लऽ अपना वील मे प्रवेश कऽ खेलऽ लेल अपना पुत्र केऽ देलथिन्ह ।
एम्हर कृष्ण अपना संगी साथीक संग द्वारिका ऐलाह । ओहि समूहक लोक सब प्रसेन केँ नहि देखि बाजय लगलाह जे ई पापी कृष्ण मणिक लोभ सँ प्रसेन केँ मारि देलाह । एहि मिथ्या कलंक सँ कृष्ण व्यथित भऽ चुप्पहि प्रसेनक खोज मे जंगल गेलाह । ओतऽ देखलाह प्रदेन मरल छथि । आगू गेलाह तऽ देखलाह एकटा सिंह मरल अछि आगू गेलाह उत्तर एकटा वील देखलाह । ओहि वील मे प्रवेश केलाह । ओ वील अन्धकारमय छलैक । ओकर दूरी १०० योजन यानि ४०० मील छल । कृष्ण अपना तेज सँ अन्धकार के नाश कऽ जखन अंतिम स्थान पर पहुँचलाह तऽ देखैत छथि खूब मजबूत नीक खूब सुन्दर भवन अछि । ओहि मे खूब सुन्दर पालना पर एकटा बच्चा के दायि झुला रहल छैक बच्चा क आँखिक सामने ओ मणि लटकल छैक दायि गवैत छैक-
सिंहः प्रसेन भयधीत, सिंहो जाम्बवता हतः ।
सुकुमारक ! मा रोदीहि, तब ह्‌येषः स्यमन्तकः ॥
अर्थात्‌ सिंह प्रसेन केँ मारलाह, सिंह जाम्बवान्‌ सँ मारल गेल, ओ बौआ ! जूनि कानू अहींक ई स्यमन्तक मणि अछि । तखनेहि एक अपूर्व सुन्दरी विधाताक अनुपम सृष्टि युवती ओतऽ ऐलीह । ओ कृष्ण केँ देखि काम-ज्वर सँ व्याकुल भऽ गेलीह । ओ बजलीह-हे कमल नेत्र ! ई मणि अहाँ लियऽ आओर तुरत भागि जाउ । जा धरि हमर पिता जाम्बवान्‌ सुतल छथि । श्री कृष्ण प्रसन्‍न भऽ शंख बजा देलथिन्ह । जाम्बवान्‌ उठैत्मात्र युद्ध कर लगलाह । हुनका दुनुक भयंकर बाहु युद्ध २१ दिन तक चलैत रहलन्हि । एम्हर द्वारिका वासी सात दिन धरि कृष्णक प्रतीक्षा कऽ हुनक प्रेतक्रिया सेहो देलथिन्ह । बाइसम दिन जाम्बवान्‌ ई निश्‍चित कऽ कि ई मानव नहि भऽ सकैत छथि । ई अवश्य परमेश्‍वर छथि । ओ युद्ध छोरि हुनक प्रार्थना केलथिन्ह अ अपन कन्या जाम्बवती के अर्पण कऽ देलथिन्ह । भगवान श्री कृश्न मणि लऽ कऽ जाम्ब्वतीक स्म्ग सभा भवन मे आइव जनताक समक्ष सत्जीत के सादर समर्पित कैलाह । सतजीत प्रसन्‍न भऽ अपन पुत्री सत्यभामा कृष्ण केँ सेवा लेल अर्पण कऽ देलथिन्ह ।
किछुए दिन मे दुरात्मा शतधन्बा नामक एकटा यादव सत्ताजित केँ मारि ओ मणि लऽ लेलक । सत्यभामा सँ ई समाचार सूनि कृष्ण बलराम केँ कहलथिन्ह-हे भ्राता श्री ! ई मणि हमर योग्य अछि । एकर शतधन्वान लेऽ लेलक । ओकरा पकरु । शतधन्वा ई सूनि ओ मणि अक्रूर कें दऽ देलथिन्ह आओर रथ पर चढ़ि दक्षिण दिशा मे भऽ गेलाह । कृष्ण-बलराम १०० योजन धरि ओकर पांछा मारलाह । ओकरा संग मे मणि नहि देखि बलराम कृष्ण केँ फटकारऽ लगलाह, “हे कपटी कृष्ण ! अहाँ लोभी छी ।” कृष्ण केँ लाखों शपथ खेलोपरान्त ओ शान्त नहि भेलाह तथा विदर्भ देश चलि गेलाह । कृष्ण धूरि केँ जहन द्वारिका एलाह तँ लोक सभ फेर कलंक देबऽ लगलैन्ह । ई कृष्ण मणिक लोभ सँ बलराम एहन शुद्ध भाय के फेज छल द्वारिका सँ बाहर कऽ देलाह । अहि मिथ्या कलंक सँ कृष्ण संतप्त रहऽ लगलाह । अहि बीच नारद (ओहि समयक पत्रकार) त्रिभुवन मे घुमैत कृष्ण सँ मिलक लेल ऐलथिन्ह । चिन्तातुर उदास कृष्ण केँ देखि पुछथिन्ह “हे देवेश ! किएक उदास छी ?” कृष्ण कहलथिन्ह, ” हे नारद ! हम वेरि वेरि मिथ्यापवाद सँ पीड़ित भऽ रहल छी ।” नारद कहलथिन्ह, “हे देवेश ! अहाँ निश्‍चिते भादो मासक शुक्ल चतुर्थीक चन्द्र देखने होएव तेँ अपने केँ बेरिबेरि मिथ्या कलंक लगैछ । श्री कृष्ण नारद सँ पूछलथिन्ह, “चन्द्र दर्शन सँ किएक ई दोष लगै छैक ।
नारद जी कहलथिन्ह, “जे अति प्राचीन काल मे चन्द्रमा गणेश जी सँ अभिशप्त भेलाह, अहाँक जे देखताह हुनको मिथ्या कलंक लगतैन्ह । कृष्ण पूछलथिन्ह, “हे मुनिवर ! गणेश जी किऐक चन्द्रमा केँ शाप देलथिन्ह ।” नारद जी कहलथिन्ह, “हे यदुनन्दन ! एक वेरि ब्रह्मा, विष्णु आओर महेश पत्नीक रुप मे अष्ट सिद्धि आओर नवनिधि के गनेश कें अर्पण कऽ प्रार्थना केयथिन्ह । गनेश प्रसन्न भऽ हुनका तीनू कें सृजन, पालन आओर संहार कार्य निर्विघ्न करु ई आशीर्वाद देलथिन्ह । ताहि काल मे सत्य लोक सँ चन्द्रमा धीरे-धीरे नीचाँ आबि अपन सौन्द्र्य मद सँ चूर भऽ गजवदन कें उपहाल केयथिन्ह । गणेश क्रुद्ध भऽ हुनका शाप देलथिन्ह, – “हे चन्द्र ! अहाँ अपन सुन्दरता सँ नितरा रहल छी । आई सँ जे अहाँ केँ देखताह, हुनका मिथ्या कलंक लगतैन्ह । चन्द्रमा कठोर शाप सँ मलीन भऽ जल मे प्रवेश कऽ गेलाह । देवता लोकनि मे हाहाकार भऽ गेल । ओ सब ब्रह्माक पास गेलथिन्ह । ब्रह्मा कहलथिन्ह अहाँ सब गणेशेक जा केँ विनति करु, उएह उपय वतौताह । सव देवता पूछलन्हि-गणेशक दर्शन कोना होयत । ब्रह्मा वजलाह चतुर्थी तिथि केँ गणेश जी के पूजा करु । सब देवता चन्द्रमा सँ कहलथिन्ह । चन्द्रमा चतुर्थीक गणेश पुजा केलाह । गणेश वाल रुप मे प्रकट भऽ दर्शन देलथिन्ह आओर कहलथिन्ह – चन्द्रमा हम प्रसन्‍न छी वरदान माँगू । चन्द्रमा प्रणाम करैत कहलथिन्ह हे सिद्धि विनायक हम शाप मुक्‍त होई, पाप मुक्‍त होई, सभ हमर दर्शन करैथ । गनेश थ बहलाघ हमर शाप व्यर्थ नहि जायत किन्तु शुक्ल पक्ष मे प्रथम उदित अहाँक दर्शन आओर नमन शुभकर रहत तथा भादोक शुक्ल पक्ष मे चतुर्थीक जे अहाँक दर्शन करताह हुनका लोक लान्छना लगतैह । किन्तु यदि ओ सिंहः प्रसेन भवधीत इत्यादि मन्त्र केँ पढ़ि दर्शन करताह तथा हमर पूजा करताह हुनका ओ दोष नहि लगतैन्ह । श्री कृष्ण नारद सँ प्रेरित भऽ एहिव्रतकेँ अनुष्ठान केलाह । तहन ओ लोक कलंक सँ मुक्‍त भेलाह ।
एहि चौठ तिथि आओर चौठ चन्द्र केँ जनमानस पर एहन प्रभाव पड़ल जे आइयो लोक चौठ तिथि केँ किछु नहि करऽ चाहैत छथि । कवि समाजो अपना काव्य मे चौठक चन्द्रमा नीक रुप मे वर्णन नहि करैत छथि । कवि शिरोमणि तुलसी मानसक सुन्दर काण्ड मे मन्दोदरी-रावण संवाद मे मन्दोदरीक मुख सँ अपन उदगार व्यक्‍त करैत छथि – “तजऊ चौथि के चन्द कि नाई” हे रावण । अहाँ सीता केँ चौठक चन्द्र जकाँ त्याग कऽ दियहु । नहि तो लोक निंदा करवैत अहाँक नाश कऽ देतीह ।
एतऽ ध्यान देवऽक बात इ अछि जे जाहि चन्द्र केँ हम सब आकाश मे घटैत बढ़ैत देखति छी ओ पुरुष रुप मे एक उत्तम दर्शन भाव लेने अछि । जे एहि लेखक विषय नहि अछि । हमर ऋषि मुनि आओर सभ्य समाजक ई ध्येय अछि, मानव जीवन सुखमय हो आओर हर्ष उल्लास मे हुनक जीवन व्यतीत होन्हि । एहि हेतु अनेक लोक पावनि अपनौलन्हि, जाहि मे आवाल वृद्ध प्रसन्‍न भवऽ केँ परिवार समाज राष्ट्र आओर विश्‍व एक आनन्द रुपी सूत्र मे पीरो अब फल जेकाँ रहथि ।
साभार : मिथिला अरिपन 
पुनः साभार - इसमाद 

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

गवाह बनल श्रीराम सेंटर मैथिलीक एकटा अद्भुत रंगमंच क, मनाओल गेल "मुक्ति पर्व".



काल्हि सोंसे श्रीराम सेंटर मिथिलाक रंग में डूबल छल, एहन लागि रहल जेना मिथिला आय दिल्ली म उतैरी गेल। मौका रहे मैथिली लोक रंग (मैलोरंग) क तत्वाधान म अविनाश चन्द्र मिश्रक नाटक 'मुक्ति पर्व' क। जेकर अनुवाद केलैथि अछि जीतेन्द्र झा आ निर्देशित केलैथि युवा निर्देशक प्रकाश झा।
साँझक ७ बजे जखन हॉल क परदा उठल आ हाथ में बांसक चंगेरा लेने मैथिली गीत गुनगुनायत मैथिली लोक रंगक दिग्गज कलकार मंच पर आयल त एक बेर एहन लागल जेना मिथिला एते उतैर गेल छल।
मिथिलाक पारंपरिक नटुआ नाच शैली में प्रस्तुत एही नाटक क मंचन अद्भुत छल। भाई बहिनक प्रेम स सरोबार एही नाटकक हरेक अभिनेता आ अभिनेत्री अपन अपन चरित्र संगे संपूर्ण रूप स न्याय केलक। शुरुआत म मंचक सूत्रधार क रूप म जखन निलेश जी आ विपटा क रूप में संतोष जी मंच पर आयल त सभगोटे के थपड़ी रुकय क नाम नै लए रहल रहे। फेर मंच पर आयल मुकेश झा जी जे चुड़क के चरित्र क जीवंत कए के एक बेर फेर अपन अभिनय क लोहा मनेलक। सामा क रूप में सपना आ साम्ब क रूप में अभिनेता अनिल सेहो अपन भूमिका क संग नीक जोंका न्याय केलक। कुल मिलाके दू घंटा क ई नाटक दर्शकक भरपूर मनोरंजन केलक आ दर्शक लोकैनि के थपड़ी क रोकि नै सकल।
मैलोरंगक ई शानदार प्रस्तुति म कनीटा कमी सेहो छल, उद्घोषिका क रूप म कुमकुम जीक उद्घोषणा दर्शक म जोश पैदा नै क सकल आ दर्शक लोगैन क जे आस अछि हुनका स ओ पूरा नै भ सकल, संगे कखनो कखनो बैकग्राउंड संगीत म भी कमी बुझा पड़ल अभिनेता आ अभिनेत्री क संग हुनकर तालमेल किछु कम लागल।
मुदा एही सभ कमी क मैलोरंगक मांजल आ कुशल अभिनेता आ अभिनेत्री क बीच किछु नै बुझायल आ जे मनोरंजन क दर्शक आशा करि रहल रहे ओ हुनका पूर्ण रूपेण भेटल।
एकटा आर गप जे सबसे बेसी जरुरी छल ओ ई जे मैथिली नाटकक इतिहास मे शायद इ पहिल बेर छल जे श्रीराम सेंटर सभागार व्‍यवसायिक रूप स खचाखच भरल छल। व्यवसायिक एही लेल कियाकि पहिल बेर मैलोरंग अपन नाटकक लेल सौ टकाक टिकट राखलक रहे। मुदा तखनो पूरा श्रीराम सेंटर खचाखच भरल छल।
 इ मैलोरंग क मेहनतक प्रति लोक क विश्‍वास आ मैथिली रंगमंच क व्‍यावसायिक भविष्‍य कए रेखांकित करैत अछि।
सभागार मे दर्शक क रूप मे विहार विधान सभाक सदस्‍य बिनोद नारायण झा, इसमाद क संपादक कुमुद सिंह, मोहल्ला लाइव क संपादक अविनाश दास, हेल्लो मिथिलाक हितेंद्र जी, मैथिली नाटकक लोग किसलय कृष्ण संगे  कईटा विशिष्‍ट लोक उपस्थित छलथि। नाटकक बाद युवा निर्देशक आ मैलोरंग संस्‍थाक संस्‍थापक निदेशक प्रकाश झा उपस्थित दर्शक लोकनि और कलाकार कए धन्‍यवाद ज्ञापित केलथि आ कर्यक्रम समाप्ति क घोषणा केलक।

सोमवार, 29 अगस्त 2011

आई थिक मुक्ति पर्व, आउ सभ गोटे मिल क मनाऊ

काल्हि पूरा दिल्ली अन्ना क जीतक ख़ुशी म सरोबार भ के जबरदस्त जश्न में डूबल रहे....सोंसे दिल्ली आ देश एकरा एकटा पर्वक रूप में मनेलक....मुदा एक बात याद राखु काल्हि तक अहाँ जतेक भी पर्व मना लेने छी ओ नीक, मुदा आय साँझ क मनाऊ "मुक्ति पर्व".......श्रीराम सेंटर मंडी हाउस में, जाही ठाम अविनाश चन्द्र मिश्र कृत मुक्ति पर्व नाटकक मंचन हाएत....मंचन म शामिल अछि मैथिली लोक रंग (मैलोरंग) क टीम आ एकरा निर्देशित करत हमर सबहक प्रिय मित्र "प्रकाश झा जी"....त बिसरब नै आय साँझ ६:३० बजे स प्रवेश शुरू भए जाएत...

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

बिहार मे लागु भेल सुचना आ संचार प्रोधोगिकी नीति

सुचना आ संचार प्रौधोगिकी क क्षेत्र म आब बिहार देश म मिशाल कायम करत। राज्य सरकार सुचना आ संचार प्रौधोगिकी नीति पर काल्हि मंजूरी दए देलैथि अछि। एही स राज्य में आईटी क क्षेत्र म विकासक उम्मीद जागल अछि। मंगल दिन आईटी संग कुल १९ मामला पर कैबिनेट अपन मुहर लगेलैथि अछि।

सुचना आ संचार प्रौधोगिकी क माध्यम स राज्य म व्यवसाय क बढ़ावा देल जाएत। एकरा लेल रोड मैप तैयार क लेल गेल अछि। सूचना आ संचार प्रौधोगिकी नीति क चारि भाग म बाटल गेल अछि। उधोग लेल, सिक्षा लेल, सरकारी सेवा लेल आ नागरिक लेल।

एही नीति क तहत उधोग क बढ़ावा दए क लेल १०० करोड़ टका क कार्पस फंडक निर्माण काएल जाएत। आ घरेलु उधोग क बढ़ावा दए क लेल ३०० करोड़ टका क विशेष प्रोत्साहन पैकेज देल जाएत।

बिहारक उधोगपति क प्रोत्साहित करबाक लेल १० प्रतिशत क छुट देल जाएत। संगे आईटी कम्पनी क प्रदुषण कंट्रोल नियम स मुक्त राखाल जाएत। शिक्षाक लेल सुचना आ संचार प्रोधोगिकी नीतिक तहत विद्यालय आ महाविद्यालयक पाठ्यक्रम क कम्युनिकेशन स्किल म शामिल काएल जाएत। संगे सरकारी विद्यालय म ओही लोगक लेल विशेष छुट भेटत जिनका एही विषय म महारत हासिल रहत। सरकार हरेक जिला म पाँच टा आईटी केंद्र सेहो खोलत।

मुख्यमंत्री नितीश कुमार क अध्यक्षता म भेल बैठक म सरकार लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल क सुपर स्पेशिएलिटि अस्पतालक रूप म विकसित करबाक अपन फैसला पर सेहो मोहर लगा देलक अछि। एही लेल कुल १४० टा पद पर स्थायी नियुक्ति हाएत।

कैबिनेटक आन फैसला म बिहार विद्यालय परीक्षा समिती द्वारा आयोजित दसवीं कक्षाक परीक्षा में पास करय बाला छात्रा क दस हज़ार राशी दए जाय पर सेहो मोहर लागि गेल अछि।

बुधवार, 24 अगस्त 2011

भ्रस्टाचारी क करू बेनकाब, भेटत इनाम

भ्रस्टाचार खत्म करबाक लेल एकटा आर मुहीम आनालखिन अछि बिहारक सुशासन बाबु, आब बिहार में भ्रस्टाचारीक खिलाफ सुचना दै बलाक ग्यारह हज़ार स पचास हज़ार टका दै क घोषणा केलथि अछि।
मंगल दिन उपमुख्यमंत्री जी एही बातक घोषणा केलक जे भ्रस्टाचार के खिलाफ आवाज उठाबै बलाक मुख्यमंत्री अवार्ड देत। अवार्ड में ग्यारह हज़ार स पचास हज़ार क राशी आ एकटा प्रशस्ति पत्र होएत।
राज्य सरकार इहो बातक घोषणा केलक जे राज्यक विजिलेंस आ ख़ुफ़िया विभागक लोग क भी भ्रस्टाचार के खिलाफ आवाज उठाबै क लेल इनाम देल जाएत। एही बातक जानकारी दैत माननीय उपमुख्यमंत्री बतेलखिन जे पिछला साढ़े पञ्च साल म ८७ टा मामला में आय स अधिक सम्पति रखबाक लेल मुकदमा दर्ज करलक अछि। संगे पञ्च टा केस में सतर्कता विभाग सम्पति जब्त करय क घोषणा क देलक अछि। मोदी जी बतेलखिन जे भ्रस्टाचार ख़त्म करबाक लेल हरेक सरकारी विभाग म एकटा सतर्कता अधिकारीक नियुक्ति हाएत।
जहाँ एक ठाम अन्नाक जोरदार अनशनक बावजूद भी सरकारक कान पर जूं नै रेंग रहल अछि ओही ठाम बिहार सरकारक भ्रस्टाचार के खिलाफ एहन मुहतोड़ जवाब काबिलेतारीफ अछि। ज्ञात होय जे मुख्यमंत्री बिहार में लोकपाल बिल क पहिने सहमती द देलक अछि आ घोषण केलथि जे बिहारक मुख्यमंत्री सेहो लोकपाल क दायरा म रहत।


 

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

ग़ज़ल

जन्म लेलोंउ जों मिथिला मे त मैथिल छी          
कर्म केलोंउ जों मिथिला मे त मैथिल छी           

मीठ बोल जों सदिखन सबहक ठोर रहे        
पान मखान स स्वागत होए त मैथिल छी         

कपटी माय नै होए ये सदिखन याद राखु        
सीता सन जों माय भेटल त  मैथिल छी       

कवी कोकिलक गान स जों मधुर छलके      
उगना बनि भगवान् भेटल त मैथिल छी     

अपने मुंह नै करब बड़ाई जानी लिया 
मिथिला हमर गाम भेल त मैथिल छी  

साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कार २०११


साहित्य अकादेमी बाल साहित्य पुरस्कार २०११ मैथिली लेल ले.क. मायानाथ झा केँ हुनकर लोककथा संग्रह "जकर नारी चतुर होइ" लेल देल गेल अछि। डॉ.भगवानजी चौधरी, प्रो. चन्द्रधर झा आ डॉ. इन्द्रकान्त झा जूरी रहथि, जूरीमे सं दू गोटे मैथिली साहित्य लेल अज्ञात नाम रहथि, से विवाद उठल जे जूरी लोकनि साहित्य अकादेमी मैथिली परामर्शदाता समितिक अध्यक्ष श्री विद्यानाथ झा "विदितक " रबर स्टाम्प रहथि । २०११ क विदेह साहित्य अकादेमी समानान्तर बाल साहित्य पुरस्कार सेहो ले.क. मायानाथ झाकेँ "जकर नारी चतुर होइ" लेल देल गेल छल।

ई घोषणा साहित्य अकादेमीक मैथिली विभाग लेल ओतेक असहज निर्णय नै छल। साहित्य अकादेमीक मैथिली विभागक ब्राह्मणवादी चेहराक असल परीक्षा हएत जखन ओकर मूल पुरस्कारक घोषणा हएत। २०११ क विदेह साहित्य अकादेमी समानान्तर मूल साहित्य पुरस्कार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जी केँ मैथिलीक आइ धरिक सर्वश्रेष्ठ कथा संग्रह “गामक जिनगी” लेल देल गेल छन्हि।


नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक सदस्यता (नेपाल देशक भाषा-साहित्य,  दर्शन, संस्कृति आ सामाजिक विज्ञानक क्षेत्रमे  सर्वोच्च सम्मान)

नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठानक सदस्यता
श्री राम भरोस कापड़ि 'भ्रमर' (2010)
श्री राम दयाल राकेश (1999)
श्री योगेन्द्र प्रसाद यादव (1994)

नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान मानद सदस्यता
स्व. सुन्दर झा शास्त्री

नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान आजीवन सदस्यता
श्री योगेन्द्र प्रसाद यादव

फूलकुमारी महतो मेमोरियल ट्रष्ट काठमाण्डू, नेपालक सम्मान
फूलकुमारी महतो मैथिली साधना सम्मान २०६७ - मिथिला नाट्यकला परिषदकेँ
फूलकुमारी महतो मैथिली प्रतिभा पुरस्कार २०६७ - सप्तरी राजविराजनिवासी श्रीमती मीना ठाकुरकेँ
फूलकुमारी महतो मैथिली प्रतिभा पुरस्कार २०६७ -बुधनगर मोरङनिवासी दयानन्द दिग्पाल यदुवंशीकेँ

साहित्य अकादेमी  फेलो- भारत देशक सर्वोच्च साहित्य सम्मान (मैथिली)


           १९९४-नागार्जुन (स्व. श्री वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” १९११-१९९८ ) , हिन्दी आ मैथिली कवि।
            २०१०- चन्द्रनाथ मिश्र अमर (१९२५- ) - मैथिली साहित्य लेल।

साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान ( क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य आ गएर मान्यताप्राप्त भाषा लेल):-
           
           २०००- डॉ. जयकान्त मिश्र (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
           २००७- पं. डॉ. शशिनाथ झा (क्लासिकल आ मध्यकालीन साहित्य लेल।)
            पं. श्री उमारमण मिश्र

 साहित्य अकादेमी पुरस्कार- मैथिली


१९६६- यशोधर झा (मिथिला वैभव, दर्शन)
१९६८- यात्री (पत्रहीन नग्न गाछ, पद्य)
१९६९- उपेन्द्रनाथ झा “व्यास” (दू पत्र, उपन्यास)
१९७०- काशीकान्त मिश्र “मधुप” (राधा विरह, महाकाव्य)
१९७१- सुरेन्द्र झा “सुमन” (पयस्विनी, पद्य)
१९७३- ब्रजकिशोर वर्मा “मणिपद्म” (नैका बनिजारा, उपन्यास)
१९७५- गिरीन्द्र मोहन मिश्र (किछु देखल किछु सुनल, संस्मरण)
१९७६- वैद्यनाथ मल्लिक “विधु” (सीतायन, महाकाव्य)
१९७७- राजेश्वर झा (अवहट्ठ: उद्भव ओ विकास, समालोचना)
१९७८- उपेन्द्र ठाकुर “मोहन” (बाजि उठल मुरली, पद्य)
१९७९- तन्त्रनाथ झा (कृष्ण चरित, महाकाव्य)
१९८०- सुधांशु शेखर चौधरी (ई बतहा संसार, उपन्यास)
१९८१- मार्कण्डेय प्रवासी (अगस्त्यायिनी, महाकाव्य)
१९८२- लिली रे (मरीचिका, उपन्यास)
१९८३- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (मैथिली पत्रकारिताक इतिहास)
१९८४- आरसी प्रसाद सिंह (सूर्यमुखी, पद्य)
१९८५- हरिमोहन झा (जीवन यात्रा, आत्मकथा)
१९८६- सुभद्र झा (नातिक पत्रक उत्तर, निबन्ध)
१९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा)
१९८८- मायानन्द मिश्र (मंत्रपुत्र, उपन्यास)
१९८९- काञ्चीनाथ झा “किरण” (पराशर, महाकाव्य)
१९९०- प्रभास कुमार चौधरी (प्रभासक कथा, कथा)
१९९१- रामदेव झा (पसिझैत पाथर, एकांकी)
१९९२- भीमनाथ झा (विविधा, निबन्ध)
१९९३- गोविन्द झा (सामाक पौती, कथा)
 १९९४- गंगेश गुंजन (उचितवक्ता, कथा)
 १९९५- जयमन्त मिश्र (कविता कुसुमांजलि, पद्य)
 १९९६- राजमोहन झा (आइ काल्हि परसू, कथा संग्रह)
 १९९७- कीर्ति नारायण मिश्र (ध्वस्त होइत शान्तिस्तूप, पद्य)
 १९९८- जीवकान्त (तकै अछि चिड़ै, पद्य)
 १९९९- साकेतानन्द (गणनायक, कथा)
 २०००- रमानन्द रेणु (कतेक रास बात, पद्य)
 २००१- बबुआजी झा “अज्ञात” (प्रतिज्ञा पाण्डव, महाकाव्य)
 २००२- सोमदेव (सहस्रमुखी चौक पर, पद्य)
 २००३- नीरजा रेणु (ऋतम्भरा, कथा)
 २००४- चन्द्रभानु सिंह (शकुन्तला, महाकाव्य)
 २००५- विवेकानन्द ठाकुर (चानन घन गछिया, पद्य)
 २००६- विभूति आनन्द (काठ, कथा)
 २००७- प्रदीप बिहारी (सरोकार, कथा)
 २००८- मत्रेश्वर झा (कतेक डारि पर, आत्मकथा)
 २००९- स्व.मनमोहन झा (गंगापुत्र, कथासंग्रह)
 २०१०-श्रीमति उषाकिरण खान (भामती, उपन्यास)
  
साहित्य अकादेमी मैथिली अनुवाद पुरस्कार
 १९९२- शैलेन्द्र मोहन झा (शरतचन्द्र व्यक्ति आ कलाकार-सुबोधचन्द्र सेन, अंग्रेजी)
 १९९३- गोविन्द झा (नेपाली साहित्यक इतिहास- कुमार प्रधान, अंग्रेजी)
 १९९४- रामदेव झा (सगाइ- राजिन्दर सिंह बेदी, उर्दू)
 १९९५- सुरेन्द्र झा “सुमन” (रवीन्द्र नाटकावली- रवीन्द्रनाथ टैगोर, बांग्ला)
 १९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबुलकलाम आजाद- अब्दुलकवी देसनवी, उर्दू)
 १९९७- नवीन चौधरी (माटि मंगल- शिवराम कारंत, कन्नड़)
 १९९८- चन्द्रनाथ मिश्र “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बांग्ला)
 १९९९- मुरारी मधुसूदन ठाकुर (आरोग्य निकेतन- ताराशंकर बंदोपाध्याय, बांग्ला)
 २०००- डॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भीष्म साहनी, हिन्दी)
 २००१- सुरेश्वर झा (अन्तरिक्षमे विस्फोट- जयन्त विष्णु नार्लीकर, मराठी)
 २००२- डॉ. प्रबोध नारायण सिंह (पतझड़क स्वर- कुर्तुल ऐन हैदर, उर्दू)
 २००३- उपेन्द दोषी (कथा कहिनी- मनोज दास, उड़िया)
 २००४- डॉ. प्रफुल्ल कुमार सिंह “मौन” (प्रेमचन्द की कहानी-प्रेमचन्द, हिन्दी)
 २००५- डॉ. योगानन्द झा (बिहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अंग्रेजी)
 २००६- राजनन्द झा (कालबेला- समरेश मजुमदार, बांग्ला)
 २००७- अनन्त बिहारी लाल दास “इन्दु” (युद्ध आ योद्धा-अगम सिंह गिरि, नेपाली)
 २००८- ताराकान्त झा (संरचनावाद उत्तर-संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यशास्त्र-गोपीचन्द नारंग, उर्दू)
 २००९- भालचन्द्र झा (बीछल बेरायल मराठी एकाँकी-  सम्पादक सुधा जोशी आ रत्नाकर मतकरी, मराठी)
 २०१०- डॉ. नित्यानन्द लाल दास ( "इग्नाइटेड माइण्ड्स" - मैथिलीमे "प्रज्वलित प्रज्ञा"- डॉ.ए.पी.जे. कलाम, अंग्रेजी)

साहित्य अकादेमी मैथिली बाल साहित्य पुरस्कार
२०१०-तारानन्द वियोगीकेँ पोथी "ई भेटल तँ की भेटल"  लेल
२०११- ले.क. मायानाथ झा "जकर नारी चतुर होइ" लेल
प्रबोध सम्मान
 प्रबोध सम्मान 2004- श्रीमति लिली रे (1933- )
 प्रबोध सम्मान 2005- श्री महेन्द्र मलंगिया (1946- )
 प्रबोध सम्मान 2006- श्री गोविन्द झा (1923- )
 प्रबोध सम्मान 2007- श्री मायानन्द मिश्र (1934- )
 प्रबोध सम्मान 2008- श्री मोहन भारद्वाज (1943- )
 प्रबोध सम्मान 2009- श्री राजमोहन झा (1934- )
 प्रबोध सम्मान 2010- श्री जीवकान्त (1936- )
 प्रबोध सम्मान 2011- श्री सोमदेव (1934- )
  
यात्री-चेतना पुरस्कार

 २००० ई.- पं.सुरेन्द्र झा “सुमन”, दरभंगा;
 २००१ ई. - श्री सोमदेव, दरभंगा;
 २००२ ई.- श्री महेन्द्र मलंगिया, मलंगिया;
 २००३ ई.- श्री हंसराज, दरभंगा;
 २००४ ई.- डॉ. श्रीमती शेफालिका वर्मा, पटना;
 २००५ ई.-श्री उदय चन्द्र झा “विनोद”, रहिका, मधुबनी;
 २००६ ई.-श्री गोपालजी झा गोपेश, मेंहथ, मधुबनी;
 २००७ ई.-श्री आनन्द मोहन झा, भारद्वाज, नवानी, मधुबनी;
 २००८ ई.-श्री मंत्रेश्वर झा, लालगंज,मधुबनी
 २००९ ई.-श्री प्रेमशंकर सिंह, जोगियारा, दरभंगा
 २०१० ई.- डॉ. तारानन्द वियोगी, महिषी, सहरसा

कीर्तिनारायण मिश्र साहित्य सम्मान
 २००८ ई. - श्री हरेकृष्ण झा (कविता संग्रह “एना त नहि जे”)
 २००९ ई.-श्री उदय नारायण सिंह “नचिकेता” (नाटक नो एण्ट्री: मा प्रविश)
 २०१० ई.- श्री महाप्रकाश (कविता संग्रह “संग समय के”) 

भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता
युवा पुरस्कार (२००९-१०) गौरीनाथ (अनलकांत) केँ मैथिली लेल।

भारतीय भाषा संस्थान (सी.आइ.आइ.एल.) , मैसूर रामलोचन ठाकुर:- अनुवाद लेल भाषा-भारती सम्मान २००३-०४ (सी.आइ.आइ.एल., मैसूर) जा सकै छी, किन्तु किए जाउ- शक्ति चट्टोपाध्यायक बांग्ला कविता-संग्रहक मैथिली अनुवाद लेल प्राप्त।  रमानन्द झा 'रमण':- अनुवाद लेल भाषा-भारती सम्मान २००४-०५ (सी.आइ.आइ.एल., मैसूर) छओ बिगहा आठ कट्ठा- फकीर मोहन सेनापतिक ओड़िया उपन्यासक मैथिली अनुवाद लेल प्राप्त।

विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार

१.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी फेलो पुरस्कार २०१०-११ 
२०१० श्री गोविन्द झा (समग्र योगदान लेल)
२०११ श्री रमानन्द रेणु (समग्र योगदान लेल)

२.विदेह समानान्तर साहित्य अकादेमी पुरस्कार २०११-१२ 
२०११ मूल पुरस्कार- श्री जगदीश प्रसाद मण्डल (गामक जिनगी, कथा संग्रह)
२०११ बाल साहित्य पुरस्कार- ले.क. मायानाथ झा (जकर नारी चतुर होइ, कथा संग्रह)
२०११ युवा पुरस्कार- आनन्द कुमार झा (कलह, नाटक)
२०१२ अनुवाद पुरस्कार- श्री रामलोचन ठाकुर- (पद्मा नदीक माझी, बांग्ला- माणिक वन्दोपाध्याय, उपन्यास बांग्लासँ मैथिली अनुवाद)

बुधवार, 17 अगस्त 2011

ख़तम भेल इन्तजार शुरू भेल बेली रोडक रेल ओवेरब्रिज

आखिरकार इन्तजारक घडी ख़तम भेल, मंगल दिन बहुत दिन स प्रतीक्षारत पाटलिपुत्र स्टेशन लग बनल बेली रोड रेल ओवेरब्रिजक उद्घाटन भए गेल। एही अवसर माननीय मुख्यमंत्री ओतोका यातायातक भीड़क देखैत कोनो सार्वजानिक भाषण नै देलक आ फटाफट स एकर उद्घाटन कए देलैथ। मुख्यमंत्री जी एही मौका पर खाली एतबे कहलैथ जे एक समय म जखन ई पुल नै बनल छल दानापुर मोड़ स लए के डाक बंगला तक बड़ भयंकर जाम लगैत छल मुदा आब ई समस्या नै रहत, एही पुलक निर्माण स हमरा बड़ संतोष भेटल अछि। एही कर्यक्रमक अध्यक्षता सड़क निर्माण मंत्री श्री नन्द किशोर यादव जी केलखिन।

एही पुलक निर्माणक संग पटना कुनू भी राज्यक राजधानी में सबसे अधिकतम रेल ओवेरब्रिज बला राजधानी बनी गेल अछि। एता आब कुल ९ टा रेल ओवेरब्रिज अछि जाही में दू टा पुरनका रेल ओवेरब्रिज सेहो शामिल अछि।

ईसीआर अधिकारीक अनुसार एही पुल पटनाक जनता लेल बहुत आराम कए काज करत, एही पुलक निर्माणक बाद जाम स त छुटकारा भेटबे करत संगे वास्तु सोंदर्य के एकटा बेजोड़ नमूना सेहो देखबाक लेल भेटत
। एही पुलक निर्माण म ८० करोड़ टका लागल छल। एकर निर्माण म गुणवत्ताक ध्यान त राखले गेल छल संगे एही म वास्तु आ कला का अद्भुत दृश्य सेहो देखबाक भेटत, पुलक रौशनी आ चिकना सड़क के देखैतो मुख्यमंत्री एकरा आर नीक बनाबै के दिशा निर्देश देलक अछि।

एकटा बात त आब साफ़ लागय अछि जे पटनाक लोगक आब जामक मुह नै देखय लए पड़त आ संगे संगे पटना में भी ओ आन मेट्रो शहर बला नज़ारा लए सकत।


शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

रक्षा-बंधनक बहुत बहुत शुभकामनाए


हिन्दू कैलेण्डरक अनुसार सावन महिनाक पूर्णिमाक दिन रक्षाबंधन पवित्र त्यौहार मनायल जाय अछि. एही त्यौहार स भाई-बहिनक एक दोसरक प्रति प्यार, स्नेह, आ अटूट विश्वास झलकय अछि. एही दिन बहिन अपन भाईक कलाई पर रेशमक धागा बांधय अछि, हुनकर ललाट पर तिलक लगाबै छैक संगे हुनकर दीर्घायु आ प्रसन्नताक लेल इश्वर स प्रार्थना करैत अछि। भाइयो एही पवित्र बंधनक मौका पर अपन बहिनक हरेक परिस्थिति म यथा संभव हुनकर रक्षा करय के प्रतिज्ञा करय अछि आ संगे उपहार सेहो दए अछि।
हिन्दू पंचांगक अनुसार सावनक पूर्णिमाक दिन जों भद्रकाल परय त राखी नै बंधवाक चाही, कथानुसार रावन एही काल मे अपन बहिनक सुर्पनेखा स राखी बंधवेलक रहे आ एक्के साल म हुनकर कुल सहित नाश भए गेल।
हिन्दू पुराण मे लिखल कथाक अनुसार एक बेर पांडवक कनिया द्रोपदी भगवान् श्रीकृष्णक कलाई स बहैत खून क रोकय कए लेल अपन साडीक अंचरा फाड़ी कए हुनकर कलाई पर बंधलक रहे ओही दिन स भाई-बहिनक एही पवित्र रिश्ताक शुरुवात भेल। एही समय श्रीकृष्ण द्रोपदीक रक्षाक वचन देलक आ चीर हरण काल हुनकर लाज बचेलक। एहन विश्वास अछि जे ओही समय से हिन्दू समाज मे एही पवित्र रिस्ताक शुरुवात भेल।

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

काल्हि से शुरू हाएत रिंग बस क एसी सेवा...

बेर बेर टाल मटोल के बाद आखिरकार रिंग बस के एसी सेवा के फैसला भए गेल। काल्हि स एकर परिचालन शुरू भए जाएत। एही सेवा के शुभारम्भ परिवहन मंत्री वृषिण पटेल करत। भोर ११ बजे स्थानीय एसके मेमोरियल हाल से ई बस के हरका झंडा देखाय के एकर शुरुवात काएल जाएत। परिवहन निगम एही बस के परिचालन के लेल तीन टा रूट चुनलक अछि। ई बस रूट नंबर २, ४, आ ७ पर चलत। एकरा लेल न्यूनतम किराया १० टका राखल गेल अछि। तकर बाद दुरी के हिसाब से किराया क्रमशः १५ आ २० टका हाएत। एही बस के चालक आ संवाहक के रिंग बस के आम बस से अलग ड्रेस देल जाएत। आ संगे एही बस अच्छा क्वालिटी के म्यूजिक सिस्टम सेहो लागायल जाएत। एही सबके देखत लागी रहल अछि बिहार विकास में एकटा आरो अध्याय जुड़ि गेल ये जखन गाम के लोग भी कम पैसा आ गर्मी में एसी बस के मजा लेत।