बुधवार, 29 दिसंबर 2010

Laxmi Nath Gosai

प्रथम देव गुरु देव जगत में, और ना दुजो देवा ।
गुरू पूजे सब देवन पूजे, गुरू सेवा सब सेवा ।।
गुरू ईष्ट गुरू मंत्र देवता, गुरू सकल उपचारा ।
गुरू मंत्र गुरू तंत्र गुरू हैं, गुरू सकल संसारा ।।
गुरू आवाहन ध्यान गुरू हैं, गुरू पंच विधि पुजा ।
गुरू पद हव्य कव्य गुरू पावक, सकल वेद गुरू दुजा ।।
गुरू होता गुरू याग महायशु, गुरू भागवत ईशा ।
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु सदाशिव, इंद्र वरुण दिग्धीशा ।।
बिनु गुरू जप तप दान व्यर्थ व्रत, तीरथ फ़ल नहिं दाता ।
"लक्ष्मीपति" नहिं सिध्द गुरू बिनु, वृथा जीव जग जाता ।।

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