शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

विश्व बैंक के समाजसेवी- उद्यमी के तलाश...

अगर अहां कोनो एनजीओ चलाबैत छी... समाजसेवा केर काज करय छी... आ फेर एहन काज करि रहल छी जेहि सं अहांक संग समाज के सेहो फायदा भ रहल अछि. लोक के जीवनस्तर सुधरि रहल अछि. तं विश्व बैंक के अहांक तलाश अछि.

एतबे नहि अहां कोनो उद्यम करय चाहय छी. अहां Entrepreneur बनय चाहय छी आ दू साल सं एहि फील्ड मे छी. अहां के पास अपन नव-नव आइडिया अछि. एहि आइडिया सं समाज के बदलय चाहय छी तं फेर अहांक लेल नीक मौका अछि.

विश्व बैंक 1998 सं ‘इंडिया डेवलपमेंट मार्केटप्लेस 2011’ नाम सं एकटा प्रोजेक्ट चलाबैत अछि. एहि प्रोजेक्ट मे अखन धरि दुनियाभर के 8 सय सं बैसि परियोजना के 60 मिलियन अमेरिकी डॉलर अनुदान देल जा चुकल अछि.

भारत मे जेहि परियोजना के विश्व बैंक मदद मिलल अछि... ओहि मे Dhrishtee, Vision Spring आओर Akash Ganga शामिल अछि. एहि परियोजना मे ककरा मदद देल जाएत एकर चयन एकटा प्रतियोगिता सं होएत अछि.

देश मे कइटा विजेता छथिन्ह मुदा अखन धरि बिहार सं कोनो विजेता नहि सामने अएलाह अछि. ई परियोजना बिहार सं सेहो जुड़ल अछि. मुख्य रूप सं ई बिहार... उड़ीसा आओर राजस्थान के लेल अछि.

एहि मे विजेता के चयन दू साल के लेल होएत. एहि दू साल मे विश्व बैंक सं कई तरहक मदद मिलैत अछि. आर्थिक मदद के तौर पर 50 हजार अमेरिकी डॉलर ( करीब साढ़े 22 लाख रुपया ) मिलैत अछि.

एहि मे प्रतियोगिता काफी कड़ा होएत अछि. मुदा विश्व बैंक एहि के लेल करीब 13 विजेता के चयन करत. तेरहों विजेता के करीब साढ़े 22- 22 लाख रुपया मिलत. एहि लेल प्रतियोगिता टफ होए के बादहुं उम्मीद करि सकय छी.

मगर एहि मे कोनो खास व्यक्ति शामिल नहि भ सकैत अछि. कोनो संस्था... संगठने टा अप्लाई करि सकैत अछि. एकरा संग ओ कम सं कम दू साल सं एहि क्षेत्र मे काज करि रहल हो. भारत सरकार सं रजिस्टर्ड हो.

अप्लाई करय वक्त अहां के ई बताबय पड़त कि अहां बिहार... उड़ीसा आओर राजस्थान मे कि करय चाहय छी? अहां एहन कोन नवका प्रोजेक्ट शुरू करय चाहय छी जेहि सं लोक के जीवनस्तर सुधरय... लोक के रोजगार के साधन मिलय?

अहां के एहन बिजनेस मॉ़डल पेश करय पड़त जेहि सं एहि तीनु राज्य के गरीब लोक के रोजगार के साधन उपलब्ध भ सकय. ओ अपना पर आत्मनिर्भर बनि सकय. संगहि संग ओ मॉडल कतेक भरोसमंद अछि. चलय वाला अछि कि नहि?

अहां एक सं बेसि प्रोजेक्ट... मॉडल पेश करि सकय छी... अप्लाई करि सकय छी मुदा ओ एक दोसरा सं लिंक नहि होए. कनिओ मिलैत नहि होए. एक बेर अप्लाई करला के बाद ओहि मे कोनो चेंज नहि होएत ताही लेल सावधानी सं भरब.

ई प्रतियोगिता 10 दिसंबर, 2010 के शुरू भेल आओर अप्लाई करय के आखिरी तारीख अछि 23 जनवरी, 2011. जेहि मे सं 30 टा के चुनल जाएत.... आओर ओहि 30टा मे सं 13 विजेता के घोषणा जयपुर मे 7-8 अप्रैल के कएल जाएत.

ते देर नै करियो आ अखने स लाएग जइयो ई काज में कोशी के झाजी के तरफ स 'बेस्ट ऑफ़ लक'

सोमवार, 17 जनवरी 2011

बिहार लोक सेवा आयोग परीक्षा

बिहार लोक सेवा आयोग के 53वीं... 54वीं आओर 55वीं सम्मिलित संयुक्त (प्रारंभिक) प्रतियोगिता परीक्षा, 2011 के सूचना निकलल अछि. जेहि मे सरकारक विभिन्न सेवा आओर संवर्ग के लेल आवेदन मांगल गेल अछि. फॉर्म सभ जिला के मुख्य डाकघर मे 15 जनवरी सं
मिलनाय शुरू भ गेल अछि.
भरल फॉर्म के जमा करय के अंतिम तारीख अछि 14 फरवरी. एकरा अहां पोस्ट ऑफिस मे जमा क सकय छी. एहि बारे मे बेसि जानकारी के लेल कृपया


बेवसाइट पर जाउ. साइट पर जाक देख लिअ जे अहांक काज लायक कोनो पोस्ट अछि कि नहि. फॉर्म के दोकान पर फॉर्म बिकनाय सेहो शुरू भ गेल होएत. अगर अहांक योग्यता... उम्र अछि त फॉर्म भरय मे देरी नहि करु.  कोशी के झाजीक तरफ सं बेस्ट ऑफ लक !

शनिवार, 15 जनवरी 2011

कोसी के लेल विश्व बैंक केर मदद

बिहार... मिथिला के कोसी क्षेत्र केर विकास के लेल विश्व बैंक बिहार के 1000 करोड़ रुपया देत. एहि बारे मे बिहार सरकार आओर विश्व बैंक के बीच एकटा समझौता भेल अछि.

समझौता के मुताबिक विश्व बैंक राज्य के आपदा प्रबंधन के लेल साढ़े चारि हजार करोड़ रुपया के मदद देत. एहि मे सं 1000 करोड़ कोसी
क्षेत्र के लेल अछि.

दू साल पहिने 2008 मे कोसी मे भीषण बाढ़ि आएल छल. ओहि सं पूरा इलाका मे भारी तबाही मचल छल.लाखों लोक प्रभावित भेल छलाह. सरकार के मुताबिक करीब 33 लाख लोक प्रभावित भेल छलाह

विश्व बैंक के तरफ सं जे मदद मिलत ओहि सं कोसी क्षेत्र मे एक लाख घर बनाएल जाएत. एकरे संग 290 किलोमीटर सड़क आओर 90 टा छोट-पैघ पुल बनाएल जाएत.

बाढ़ि सं प्रभावित लोक के लेल रोजगार के साधन सेहो मुहैया करायल जाएत. ओहि टाइम बाढ़ि सं लोक के घर-द्वार... माल-मवेशी सभ बहि गेल छल.

सरकार तरफ सं लोक के बसाबय लेल काफी कोशिश कएल गेल. मुदा अखनो काफी किछ करय के जरूरत अछि. अपन गाम-घर सं विस्थापित भेल लोक के बसाबय के जरूरत अछि.

तिला संक्रांति केर शुभकामना...

अहां सभके तिला संक्रांति... चूड़ा-दही... लाई-चूड़लाई... खिचड़ी केर शुभकामना.

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

विद्यापति गीत

विद्यापति गीत



(१.)


जय जय भैरवि असुरभयाउनि, पसुपति–भाबिनि माया ।
सहज सुमति वर दिअ हे गोसाञुनि, अनुगति गति तुअ पाया ।।


बासर–रइनि सवासने सोभित, चरन चन्‍द-मनि-चूड़ा ।
कतओक दैत मारि मुहे मेरल, कतन उगिलि करु कूड़ा ।।


सामर बदन, नयन अनुरञ्जित, जलद जोग फुल कोका ।
कट-कट विकट ओठ–पुट पाँड़रि, लिधुर–फेन उठ फोका ।६।।


घन घन घनन घुघुरु कटि बाजए, हन हन कर तुअ काता ।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक, पुत्र बिसरु जनु माता ।।८।।


 
सैसव जौवन दुहु मिलि गेल। स्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।
वचनक चातुरि लहु-लहु हास। धरनिए चाँद कएल परगास।
मुकुर हाथ लए करए सिङ्गार। सखि पूछए कैसे सुरत-बिहार।
निरजन उरज हेरइ कत बेरि। बिहुसए अपन पयोधर हेरि।
पहिल बदरि सम पुनु नवरङ्ग। दिने-दिने मदन अगोरल अङ्ग।।
माधव देखल अपरुब बाला। सैसव जौवन दुहु एक भेला।।
विद्यापति कह तुहु अगेआनि। दुहु एक जोग इह के कह सयानि।।


(३.)
के पतिआ लय जायत रे, मोरा पिअतम पास।
हिय नहि सहय असह दुखरे, भेल माओन मास।।
एकसरि भवन पिआ बिनु रे, मोहि रहलो न जाय।
सखि अनकर दुख दारुन रे, जग के पतिआय।।
मोर मन हरि लय गेल रे, अपनो मन गेल।
गोकुल तेजि मधुपुर बसु रे, कत अपजस लेल।।
विद्यापति कवि गाओल रे, धनि धरु मन मास।
आओत तोर मन भावन रे, एहि कातिक मास।।






(४.)


चानन भेल विषम सर रे, भुषन भेल भारी।
सपनहुँ नहि हरि आयल रे, गोकुल गिरधारी।।
एकसरि ठाठि कदम-तर रे, पछ हरेधि मुरारी।
हरि बिनु हृदय दगध भेल रे, झामर भेल सारी।।
जाह जाह तोहें उधब हे, तोहें मधुपुर जाहे।
चन्द्र बदनि नहि जीउति रे, बध लागत काह।।
कवि विद्यापति गाओल रे, सुनु गुनमति नारी।
आजु आओत हरि गोकुल रे, पथ चलु झटकारी।।






(५.)


सासु जरातुरि भेली। ननन्दि अछलि सेहो सासुर गेली।
तैसन न देखिअ कोई। रयनि जगाए सम्भासन होई।
एहि पुर एहे बेबहारे। काहुक केओ नहि करए पुछारे।
मोरि पिअतमकाँ कहबा। हमे एकसरि धनि कत दिन रहबा।
पथिक, कहब मोर कन्ता। हम सनि रमनि न तेज रसमन्ता।
भनइ विद्यापति गाबे। भमि-भमि विरहिनि पथुक बुझाबे।




(६.)
उचित बसए मोर मनमथ चोर। चेरिआ बुढ़िआ करए अगोर।
बारह बरख अवधि कए गेल। चारि बरख तन्हि गेलाँ भेल।
बास चाहैत होअ पथिकहु लाज। सासु ननन्द नहि अछए समाज।
सात पाँच घर तन्हि सजि देल। पिआ देसाँतर आँतर भेल।
पड़ेओस वास जोएनसत भेल। थाने थाने अवयव सबे गेल।
नुकाबिअ तिमिरक सान्धि। पड़उसिनि देअए फड़की बान्धि।
मोरा मन हे खनहि खन भाग। गमन गोपब कत मनमथ जाग।




(७.)


हम एकसरि, पिअतम नहि गाम। तेँ मोहि तरतम देइते ठाम।
अनतहु कतहु देअइतहुँ बास। दोसर न देखिअ पड़ओसिओ पास।
छमह हे पथिक, करिअ हमे काह। बास नगर भमि अनतह चाह।
आँतर पाँतर, साँझक बेरि। परदेस बसिअ अनाइति हेरि।
मोरा मन हे खनहि खन भाँग। जौवन गोपब कत मनसिज जाग।
घोर पयोधर जामिनि भेद। जे करतब ता करह परिछेद।
भनइ विद्यापति नागरि-रीति। व्याज-वचने उपजाब पिरीति।




(८.)


ससन-परस रबसु अस्बर रे देखल धनि देह।
नव जलधर तर चमकय रे जनि बिजुरी-रेह।।
आजु देखलि धनि जाइत रे मोहि उपजल रंग।
कनकलता जनि संचर रे महि निर अवलम्ब।।
ता पुन अपरुब देखल रे कुच-जुग अरविन्द।
विकसित नहि किछुकारन रे सोझा मुख चन्द।।
विद्यापति कवि गाओल रे रस बुझ रसमन्त।
देवसिंह नृप नागर रे, हासिनि देइ कन्त।।


(९.)


जाइत पेखलि नहायलि गोरी।
कल सएँ रुप धनि आनल चोरी।।
केस निगारहत बह जल धारा।
चमर गरय जनि मोतिम-हारा।।
तीतल अलक-बदन अति शोभा।
अलि कुल कमल बेढल मधुलोभा।।
नीर निरंजन लोचन राता।
सिंदुर मंडित जनि पंकज-पाता।।
सजल चीर रह पयोधर-सीमा।
कनक-बेल जनि पडि गेल हीमा।।
ओ नुकि करतहिं जाहि किय देहा।
अबहि छोडब मोहि तेजब नेहा।।
एसन रस नहि होसब आरा।
इहे लागि रोइ गरम जलधारा।।
विद्यापति कह सुनहु मुरारि।
वसन लागल भाव रुप निहारि।।


(१०.)


जाइत देखलि पथ नागरि सजनि गे, आगरि सुबुधि सेगानि।
कनकलता सनि सुनदरि सजनि में, विहि निरमाओलि आनि।।
हस्ति-गमन जकां चलइत सजनिगे, देखइत राजकुमारि।
जनिकर एहनि सोहागिनि सजनि में, पाओल पदरथ वारि।।
नील वसन तन घरेल सजनिगे, सिरलेल चिकुर सम्हारि।
तापर भमरा पिबय रस सजनिगे, बइसल आंखि पसारि।।
केहरि सम कटि गुन अछि सजनि में, लोचन अम्बुज धारि।।
विद्यापति कवि गाओलसजनि में, गुन पाओल अवधारि।।


(११.)


जखन लेल हरि कंचुअ अछोडि
कत परि जुगुति कयलि अंग मोहि।।
तखनुक कहिनी कहल न जाय।
लाजे सुमुखि धनि रसलि लजाय।।
कर न मिझाय दूर दीप।
लाजे न मरय नारि कठजीव।।
अंकम कठिन सहय के पार।
कोमल हृदय उखडि गेल हार।।
भनह विद्यापति तखनुक झन।
कओन कहय सखि होयत बिहान।।


(१२.)

कि कहब हे सखि आजुक रंग।

सपनहिं सूतल कुपुरुप संग।।
बड सुपुक्ख बलि आयल घाइ।
सूति रहल मोर आंचर झंपाइ।।
कांचुलि खोलि आंलिगल देल।
मोहि जगाय आपु जिंद गेल।
हे बिहि हे बिहि बड दुम देल।।
से दुख हे सखि अबहु न गेल।।
भनई विद्यापति एस रश इंद।
भेक कि जान कुसुम मकरंद।।


(१३.)


मानिनि आब उचित नहि मान।
एखनुक रंग एहन सन लागय जागल पए पंचबान।।
जूडि रयनि चकमक करन चांदनि एहन समय नहि आन।
एहि अवसर पिय मिलन जेहन सुख जकाहि होय से जान।।
रभसि रभसि अलि बिलसि बिलसि कलि करय मधु पान।
अपन-अपन पहु सबहु जेमाओल भूखल तुऊ जजमान।।
त्रिबलि तरंग सितासित संगम उरज सम्भु निरमान।
आरति पति मंगइछ परति ग्रह करु धनि सरबस दान।।
दीप-बाति सम भिर न रहम मन दिढ करु अपन गेयान।
संचित मदन बेदन अति दारुन विद्यापति कवि भान।।






(१४.)


कुच-जुग अंकुर उतपत् भेल।
चरन-चपल गति लोचन लेल।।
अब सब अन रह आँचर हाथ
लाजे सखीजन न पूछय बात।।
कि कहब माधव वयसक संधि।
हेरइत मानसिज मन रहु बंधि।।
तइअओ काम हृदय अनुपाम।
रोपल कलस ऊँच कम ठाम।।
सुनइत रस-कथा थापय चीत।
जइसे कुरंगिनि सुय संगीत।।
सैसव जीवन उपजल बाद।
केओ नहि मानय जय अवसाद।।
विद्यापति कौतुक बलिहारि।
सैसव से तनु छोडनहि पारि।।


(१५.)


सैसव जीवन दुहु सिलि गेल।
श्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।।
वचनक चातुरि नहुनहु हास।
धरनिये चान कयल परकास।।
मुकुर हाथ लय करम सिंगार।
सखइ पूछय कइसे सुरत-विहार।।
निरंजन अपन पयेचर हेरि।।
पहिले बदरि सम पुन नवरंग।
दिन-दिन अनंग अगोरल अंग।।
माधव पेखल अपरुब बाला।
सैसव जौवन दुहु एक भेला।।
विद्यापति कह तुहु अगेआनि।
दुहु एक जोग इह के कह सयानि।।


(१६.)

कान्ह हेरल छल मन बड़ साध।

कान्ह हेरइत भेलएत परमाद।।
तबधरि अबुधि सुगुधि हो नारि।
कि कहि कि सुनि किछु बुझय न पारि।।
साओन घन सभ झर दु नयान।
अविरल धक-धक करय परान।।
की लागि सजनी दरसन भेल।
रभसें अपन जिब पर हाथ देल।।
न जानिअ किए करु मोहन चारे।
हेरइत जिब हरि लय गेल मारे।।
एत सब आदर गेल दरसाय।
जत बिसरिअ तत बिसरि न जाय।।
विद्यापति कह सुनु बर नारि।
धैरज धरु चित मिलब मुरारि।।


(१७.)


कंटक माझ कुसुम परगास।
भमर बिकल नहि पाबय पास।।
भमरा भेल कुरय सब ठाम।
तोहि बिनु मालति नहिं बिसराम।।
रसमति मालति पुनु पुनु देखि।
पिबय चाह मधु जीव उपेंखि।।
ओ मधुजीवि तोहें मधुरासि।
सांधि धरसि मधु मने न लजासि।।
अपने मने धनि बुझ अबगाही।
तोहर दूषन बध लागत काहि।।
भनहि विद्यापति तओं पए जीव।
अधर सुधारस जओं परपीब।।


(१८.)

कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी।

एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।।
छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी।
अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उधारी।।
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी।
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।।
भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी।
हरिक संग कछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी।।
(१९.)


आहे सधि आहे सखि लय जनि जाह।
हम अति बालिक आकुल नाह।।
गोट-गोट सखि सब गेलि बहराय।
ब केबाड पहु देलन्हि लगाय।।
ताहि अवसर कर धयलनि कंत।
चीर सम्हारइत जिब भेल अंत।।
नहि नहि करिअ नयन ढर नीर।
कांच कमल भमरा झिकझोर।।
जइसे डगमग नलिनिक नीर।
तइसे डगमग धनिक सरीर।।
भन विद्यापति सुनु कविराज।
आगि जारि पुनि आमिक लाज।।


(२०.)

सामरि हे झामरि तोर दहे।

कह कह कासँए लायलि नहे।।
निन्दे भरल अछि लोचन तोर।
कोमल बदन कमल रुचि चारे।।
निरस धुसर करु अधर पँवार।
कोन कुबुधि लुतु मदन-भंडार।।
कोन कुमति कुच नख-खतदेल।
हा-हा सम्भु भागन भेय गेल।।
दमन-लता सम तनु सुकुमार।
फूटल बलय टुटल गुमहार।।
केस कुसुम तोर सिरक सिन्दूर।
अलक तिलक हे सेहो गेल दूर।।
भनइ विद्यापति रति अवसान।
राजा सिंवसिंह ईरस जान।।


(२१.)

कि कहब हे सखि रातुक बात।

मानक पइल कुबानिक हाथ।।
काच कंचन नहि जानय मूल।
गुंजा रतन करय समतूल।।
जे किछु कभु नहि कला रस जान।
नीर खीर दुहु करय समान।।
तन्हि सएँ कइसन पिरिति रसाल।
बानर-कंठ कि सोतिय माल।।
भनइ विद्यापति एह रस जान।
बानर-मुह कि सोभय पान।।


(२२.)


आजु दोखिअ सखि बड़ अनमन सन, बदन मलिन भेल तारो।
मन्द वचन तोहि कओन कहल अछि, से न कहिअ किअ मारो।
आजुक रयनि सखि कठि बितल अछि, कान्ह रभस कर मंदा।
गुण अवगुण पहु एकओ न बुझलनि, राहु गरासल चंदा।।
अधर सुखायल केस असझासल, धामे तिलक बहि गेला।
बारि विलासिनि केलि न जानथि, भाल अकण उड़ि गेला।।
भनइ विद्यापति सुनु बर यौवति, ताहि कहब किअ बाधे।
जे किछु पहुँ देल आंचर बान्हि लेल, सखि सभ कर उपहासे।।


(२३.)


कामिनि करम सनाने
हेरितहि हृदय हनम पंचनाने।
चिकुर गरम जलधारा
मुख ससि डरे जनि रोअम अन्हारा।
कुच-जुग चारु चकेबा
निअ कुल मिलत आनि कोने देवा।
ते संकाएँ भुज-पासे
बांधि धयल उडि जायत अकासे।
तितल वसन तनु लागू
मुनिहुक विद्यापति गाबे
गुनमति धनि पुनमत जन पाबे।


(२४.)

नन्दनक नन्दन कदम्बक तरु तर, धिरे-धिरे मुरलि बजाब।

समय संकेत निकेतन बइसल, बेरि-बेरि बोलि पठाव।।
साभरि, तोहरा लागि अनुखन विकल मुरारि।
जमुनाक तिर उपवन उदवेगल, फिरि फिरि ततहि निहारि।।
गोरस बेचरा अबइत जाइत, जनि-जनि पुछ बनमारि।
तोंहे मतिमान, सुमति मधुसूदन, वचन सुनह किछु मोरा।
भनइ विद्यापति सुन बरजौवति, बन्दह नन्द किसोरा।।


(२५.)


अम्बर बदन झपाबह गोरि।
राज सुनइ छिअ चांदक चोरि।।
घरे घरे पहरु गेल अछ जोहि।
अब ही दूखन लागत तोहि।।
कतय नुकायब चांदक चोरि।
जतहि नुकायब ततहि उजोरि।।
हास सुधारस न कर उजोर।
बनिक धनिक धन बोलब मोर।।
अधर समीप दसन कर जोति।
सिंदुर सीम बैसाउलि मोति।।
भनइ विद्यापति होहु निसंक।
चांदुह कां किछु लागु कलंक।।


(२६.)

चन्दा जनि उग आजुक राति।

पिया के लिखिअ पठाओब पांति।।
साओन सएँ हम करब पिरीति।
जत अभिमत अभि सारक रिति।।
अथवा राहु बुझाओब हंसी
पिबि जनु उगिलह सीतल ससी।।
कोटि रतन जलधर तोहें लेह।
आजुक रमनि धन तम कय देह।।
भनइ विद्यापति सुभ अभिसार।
भल जल करथइ परक उपकार।।


(२७.)


ए धनि माननि करह संजात।
तुअ कुच हेमघाट हार भुजंगिनी ताक उपर धरु हाथ।।
तोंहे छाडि जदि हम परसब कोय। तुअ हार-नागिनि कारब माथे।।
हमर बचन यदि नहि परतीत। बुझि करह साति जे होय उचीत।।
भुज पास बांधि जघन तले तारि। पयोधर पाथर अदेह मारि।।
उप कारा बांधि राखह दिन-राति। विद्यापति कह उचित ई शादी।।


(२८.)


माधव ई नहि उचित विचार।
जनिक एहनि धनि काम-कला सनि से किअ करु बेभिचार।।
प्रनहु चाहि अधिक कय मानय हदयक हार समाने।
कोन परि जुगुति आनके ताकह की थिक तोहरे गेआने।।
कृपिन पुरुषके केओ नहि निक कह जग भरि कर उपहासे।
निज धन अछइत नहि उपभोगब केवल परहिक आसे।।
भनइ विद्यापति सुनु मथुरापति ई थिक अनुचित काज।
मांगि लायब बित से जदि हो नित अपन करब कोन काज।।


(२९.)


सजनी कान्ह कें कहब बुझाइ।
रोपि पेम बिज अंकुर मूड़ल बांढब कओने उपाइ।।
तेल-बिन्दु दस पानि पसारिअ ऐरान तोर अनुराग।
सिकता जल जस छनहि सुखायल ऐसन तोर सोहाग।।
कुल-कामिली छलौं कुलटा भय गेलौं तनिकर बचन लोभाइ।
अपेनहि करें हमें मूंड मूडाओल कान्ह सेआ पेम बढ़ाइ।।
चोर रमनि जनि मने-मने रोइअ अम्बर बदन भपाइ।
दीपक लोभ सलभ जनि घायल से फल पाओल घाइ।।
भनइ विद्यापति ई कलयुग रिति चिन्ता करइ न कोई।
अपन करम-दोष आपहि भोगइ जो जनमान्तर होइ।।


(३०.)


अभिनव पल्लव बइसंक देल।
धवल कमल फुल पुरहर भेल।।
करु मकरंद मन्दाकिनि पानि।
अरुन असोग दीप दहु आनि।।
माह हे आजि दिवस पुनमन्त।।
करिअ चुमाओन राय बसन्त।।
संपुन सुधानिधि दधि भल भेल।
भगि-भगि भंगर हंकराय गेल।।
केसु कुसुम सिन्दुर सम भास।
केतकि धुलि बिथरहु पटबास।।
भनइ विद्यापति कवि कंठहार।
रस बझ सिवसिंह सिव अवतार।।


(३१.)


अभिनव कोमल सुन्दर पात।
सगर कानन पहिरल पट रात।
मलय-पवन डोलय बहु भांति
अपन कुसुम रसे अपनहि माति।।
देखि-देखि माधव मन हुलसंत।
बिरिन्दावन भेल बेकत बसंत।।
कोकिल बोलाम साहर भार।
मदन पाओल जग नव अधिकार।।
पाइक मधुकर कर मधु पान।
भमि-भमि जोहय मानिनि-मान।।
दिसि-दिसि से भमि विपिन निहारि।
रास बुझावय मुदित मुरारि।
भनइ विद्यापति ई रस गाव।
राधा-माधव अभिनव भाव।।


(३२.)


सरसिज बिनु सर सर बिनु सरसिज, की सरसिज बिनु सूरे।
जौबन बिनु तन, तन बिनु जौबन की जौक पिअ दूरे।।
सखि हे मोर बड दैब विरोधी।
मदन बोदन बड पिया मोर बोलछड, अबहु देहे परबोधी।।
चौदिस भमर भम कुसुम-कुसुम रम, नीरसि भाजरि पीबे।
मंद पवन बह, पिक कुहु-कुहु कह, सुनि विरहिनि कइसे जीवे।।
सिनेह अछत जत, हमे भेल न टुटत, बड बोल जत सबथीर।
अइसन के बोल दुहु निज सिम तेजि कहु, उछल पयोनिधि नीरा।।
भनइ विद्यापति अरे रे कमलमुखि, गुनगाहक पिय तोरा।
राजा सिवसिंह रुपानरायन, रहजे एको नहि भोरा।।


(३३.)


लोचन धाय फोघायल हरि नहिं आयल रे।
सिव-सिव जिव नहिं जाय आस अरुझायल रे।।
मन कर तहाँ उडि जाइ जहाँ हरि पाइअ रे।
पेम-परसमनि-पानि आनि उर लाइअ रे।।
सपनहु संगम पाओल रंग बढाओलरे।
से मोर बिहि विघटाओल निन्दओ हेराओल रे।।
सुकवि विद्यापति गओल धनि धइरज धरु रे।
अचिरे मिलत तोर बालमु पुरत मनोरथ रे।।


(३४.)


आसक लता लगाओल सजनी, नयनक नीर पटाय।
से फल आब परिनत भेल मजनी, आँचर तर न समाय।।
कांच सांच पहु देखि गेल सजनी, तसु मन भेल कुह भान।
दिन-दिन फल परिनत भेल सजनी, अहुनख कर न गेआना।
सबहक पहु परदेस बसु सजनी, आयल सुमिरि सिनेह।
हमर एहन पति निरदय सजनी, नहि मन बाढय नहे।।
भनइ विद्यापति गाओल सजनी, उचित आओत गुन साइ।
उठि बधाव करु मन भरि सजनी, अब आओत घर नाह।।


(३५.)


जौवन रतन अछल दिन चारि।
से देखि आदर कमल मुरारि।।
आवे भेल झाल कुसुम रस छूछ।
बारि बिहून सर केओ नहि पूछ।।
हमर ए विनीत कहब सखि राम।
सुपुरुष नेह अनत नहि होय।।
जावे से धन रह अपना हाथ।
ताबे से आदर कर संग-साथ।।
धनिकक आदर सबतह होय।
निरधन बापुर पूछ नहि कोय।।
भनइ विद्यापति राखब सील।
जओ जग जिबिए नब ओनिधि भील।।


(३६.)
हम जुवती, पति गेलाह बिदेस। लग नहि बसए पड़उसिहु लेस।
सासु ननन्द किछुआओ नहि जान। आँखि रतौन्धी, सुनए न कान।
जागह पथिक, जाह जनु भोर। राति अन्धार, गाम बड़ चोर।
सपनेहु भाओर न देअ कोटबार। पओलेहु लोते न करए बिचार।
नृप इथि काहु करथि नहि साति।
पुरख महत सब हमर सजाति॥
विद्यापति कवि एह रस गाब। उकुतिहि भाव जनाब।




(३७.)


बड़ि जुड़ि एहि तरुक छाहरि, ठामे ठामे बस गाम।
हम एकसरि, पिआ देसाँतर, नहि दुरजन नाम।
पथिक हे, एथा लेह बिसराम।
जत बेसाहब किछु न महघ, सबे मिल एहि ठाम।
सासु नहि घर, पर परिजन ननन्द सहजे भोरि।
एतहु पथिक विमुख जाएब तबे अनाइति मोरि।
भन विद्यापति सुन तञे जुवती जे पुर परक आस।




(३८.)


परतह परदेस, परहिक आस। विमुख न करिअ, अबस दिस बास।
एतहि जानिअ सखि पिअतम-कथा।
भल मन्द नन्दन हे मने अनुमानि। पथिककेँ न बोलिअ टूटलि बानि।
चरन-पखारन, आसन-दान। मधुरहु वचने करिअ समधान।
ए सखि अनुचित एते दुर जाए। आओर करिअ जत अधिक बड़ाइ।


(३९.)


कि कहब हे सखि रातुक बात।मानिक पइल कुबानिक हाथ।
काच क्ञ्चन नहि जानए मूल।गुञ्जा रतन करए समतूल।
जे न कबहु किछु कला-रस जान।नीर-खीर दुहु करए समान।
तन्हि सञो कहाँ पिरीति रसाल।बानर-कण्ठ कि मोतिम माल।
भनइ विद्यापति ई रस जान।बानर-मूह कि सोभए पान।
(४०.)




सैसव जौवन दरसन भेल। दुहु दले बलहि दन्द पड़ि गेल।
कबहु बान्धए कच कहु बिथार। कबहु झापए अङ्ग कबहु उघार।
थीर नयान अथिर किछु भेल। उरज-उदय-थल लालिम देल।
पद चञ्चल, चित चञ्चल भान। जागल मनसिज मुदित नयान।
विद्यापति कह कर अवधान। बाला आङ्गे लागल पञ्चवान।




(४१.)
बड़ सुखसार पाओल तुअ तीरे। छाड़इते निकट नयन बह नीरे।
कर जोड़ि बिनमञो विमलतरङ्गे । पुन दरसन होअ पुनिमति गङ्गे ।
एक अपराध छेँओब मोर जानी । परसल माए पाए तुअ पानी।
कि करब जप तप जोग धेआने । जनम सुफल भेल एकहि सनाने।
भनइ विद्यापति समन्दञो तोही । अंत काल जनु बिसरह मोही।




(४२.)
कखन हरब दुख मोर, हे भोलानाथ।
दुखहि जनम भेल, दुखहि जिवन गेल, सपनहु नहि सुख मोर।
एहि भव सागर थाह कतहु नहि, भैरव धरु करुआर।
भन विद्यापति मोर भोलानाथ गति करब अन्त मोहि पार।

विद्यापति गीत

                                                                  विद्यापति गीत


जय जय भैरवि असुरभयाउनि, पसुपति–भाबिनि माया ।
सहज सुमति वर दिअ हे गोसाञुनि, अनुगति गति तुअ पाया ।।

बासर–रइनि सवासने सोभित, चरन चन्‍द-मनि-चूड़ा ।
कतओक दैत मारि मुहे मेरल, कतन उगिलि करु कूड़ा ।।

सामर बदन, नयन अनुरञ्जित, जलद जोग फुल कोका ।
कट-कट विकट ओठ–पुट पाँड़रि, लिधुर–फेन उठ फोका ।६।।

घन घन घनन घुघुरु कटि बाजए, हन हन कर तुअ काता ।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक, पुत्र बिसरु जनु माता ।।८।।

बिहार में अफसर होयत आकी बाबु सबके करैल परत अपन संपति के घोसना !

hबिहार के लोगेन सबहक ले एकटा नीक खबर ये अब बिहार में बाबु हेता या अफसर कोनो के संपति छुपल नै रहत | सचिवालय सा ल का जिला, अनुमंडल आऔर निचला स्तर पे जतेक भी सरकारी मुलाजिम ये सबटा के अपन संपति के घोषणा करै ल़ा परथीन | ३१ जनवरी तलक अगर ओ ब्यौरा नै दs  सकलखिन तखन हुनकर वेतनों बंद क देल जेतै|
वार्षिक चरित्र पंजिका में दर्ज हेतई की संपतिक ब्यौरा देल गेल अछि आs की नै |
एही व्यवस्था के सरकारक भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एकटा नवगर योजना से जोइर के देखल जाईत अछि | बुझाइत आछि की एही काज सौं सरकारिक सेवा क घासक मैदान बुझाई बला के सोच पर कोनो बज्रपात होयत |
कोशी के झाजी

बुधवार, 5 जनवरी 2011

पू्र्णिया विधायक राजकिशोर केसरी केर हत्या.................

पू्र्णिया सं बीजेपी विधायक राजकिशोर केसरी के हत्या करि देल गेल अछि. हुनकर हत्या चाकू मारि क कएल गेल अछि. चाकू मारय वाली छथीह पूर्णिया के रूपम पाठक.

रूपम पाठक पूर्णिया मे एकटा प्राइवेट स्कूल चलाबय छथीह आओर ओहि स्कूल के प्रिंसिपल सेहो छथीह. रूपम जी पिछला साल मई मे बीजेपी एमएलए पर यौन शोषण
के आरोप लगौने छलीह.

ओहि टाइम एकरा लsक काफी हंगामा भेल छल. किएक त जखन रुपम जी एकर शिकायत पुलिस के पास कएने छलीह त पुलिस मामला दर्ज करय सं आनाकानी करने छल.
बाद मे लोक के हो-हल्ला आओर हंगामा के बाद एफआईआर दर्ज भेल. चूंकि ई काफी हाई-प्रोफाइल मामला छल ताहि लेल पुलिस एकरा अनठिऔने रहल.

एहि तरहक एकटा आओर मामला दू साल पहिने सेहो उठल छल मुदा ओहि मे हिनका क्लिनचिट मिल गेल छलन्हि. मुदा एहि बेर रूपम पाठक फैसला सं पहिने हत्या करि देलखिन्ह.

लोक के त इहो कहनाय छनि जे रूपम पाठक एक बेर एमएलए साहेब के भरल लोक के बीच थापड़ि सेहो रसीद करि देने छलीह. एहि सं बीजेपी के काफी थू-थू भेल छल.

रूपम पाठक के शिकायत छलन्हि जे विधायक जी आओर हुनकर पीए हुनका संग तीस साल धरि यौन शोषण करलक. मुदा केसरी जी एकरा राजनीति सं प्रेरित बताबैत रहलखिन्ह.

केसरी जीक कहनाय छलन्हि जे ई हुनका राजनीतिक रूप सं बदनाम करय के साजिश अछि. ई हुनकर विरोधी के एकटा चाल अछि. एहि मामला पर बाद मे सुलह भ जाए के खबर सेहो आएल छल.
मुदा ई जे भेल ओ त एकदम सं उलट रहल. कहल जा रहल अछि जे रूपम पाठक हुनका सं मिलय के समय लेलीह आ मुलाकात के बाद लौटेत वक्त अपन चादर मे नुका क लs गेल चाकू सं हुनका घायल करि देलीह.

चाकू सं वार करतहि हो-हल्ला मचि गेल. लोक सभ विधायक जी के अस्पताल ल गेलखिन्ह जतय हुनका मृत घोषित करि देल गेल. एहि सं खिसिआएल लोक सभ ओहि महिला के पकड़ि जमि क पिटाई करलखिन्ह.

ओहि स्कूल टीचर महिला के हाल सेहो खराब बताएल जा रहल अछि.... पुलिस महिला के गिरफ्तार करि लेल गेल अछि.

लोक के रूपम पाठक के बारे मे सेहो कहनाय छनि जे ओ पारिवारिक विवाद सं तनाव मे रहय छथीह...आओर विवाद मे सेहो रहल छथीह.

बीजेपी विधायक राजकिशोर केसरी इलाका मे काफी लोकप्रिय छलखिन्ह. इलाका के लेल काफी काज सेहो करलखिन्ह. ई हुनकर काजे छल जे ओ लगातार चारि बेर सं विधायक बनि रहल छलाह. केसरी जीक उम्र 51 साल छलन्हि.
केसरी जी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जीक आओर उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जीक करीबी सेहो मानल जाए छलखिन्ह.

मुख्यमंत्री एहि पर दुख जतौलखिन्ह आओर जांच के आदेश द देलखिन्ह. मुदा हिनका पर लागल आरोप के बाद नीतीश जी हिनका सं दूरी बना लेने छलखिन्ह.

चुनाव के समय त इहो खबर आएल छल जे मुख्यमंत्री जी जखन पूर्णिया गेल छलखिन्ह त केसरी जी के मंच सं चुपचाप हटा देल गेल छलन्हि. किएक त नीतीश जी हिनका संग मंच शेयर नहि करय चाहय छलखिन्ह.

ओना ओहि टाइम बीजेपी के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी हिनकर बचाव कएने छलखिन्ह. आब देखिऔ एहि मामला मे कि निकलि क आबैत अछि.@@@@@@@Jhajee

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

"ललित बाबु मिथिला के चाँद"


'दिन बिन सूरज, राति बिन चान
ललित बिन मिथिला एक समान'

आय ललित बाबु नै ये हमर सबहक बिच मुदा हुनकर आदर्श, अओर हुनकर काज जे मिथिला के साथ-साथ देशो के विकाश के लेल ये अइयो ताजा ये | कोशी के ई उपेक्षित इलाका से निकैल के देश-विदेश में अपन आभा फैलावे वाला महापुरुष ये  ललित बाबु |
मिथिलांचल के विकाश लेल जे हुनी ३५ वर्षक पहिल जे लकीर खिचलखिन ओ पैमाना आइयो तक बनल ये |
ओ अपन जीवन कल में ओ मुकाम पे पहुँच गेल रहे जेतां पहुचे के लेल सहज बात नै ये|
नया साल के ख़ुशी मनावै के बाद जखन ३ जनवरी के हुनकर पुण्यतिथि आबैए ये ते सौंसे मिथिलांचल के आइंख नाम भ जाये ये, सबहक मों में उ १९७५ के ओ करिया दें उभेर जाय ये जखन की षड़यंत्रकारि के सोचल समझल साजिश के कारन युग पुरुष कोशी पुत्र, बिहार प्रेम से पूर्व रेलमंत्री स्व. ललित नारायण मिश्र के हत्या केर देल गेलाह रहे| हुनकर हत्या ओ समय में का देल गेल रहे जखन ओ बिहार के नव निर्माण में जुटल रहलखिन|
सुपौल जिला के बसावनपट्टी के मिश्र परिवार में हिनकर जनम ३ फरवरी १९२२ के वसंत पंचमी को अपन ननिहाल कुमार वाजितपुर में भेल रहे| कोशी के विनाश के चलते मिश्र परिवार के पूर्वज बलुआ बाज़ार में जा क बैस गेल रहे जते आइयो तक ओ मूल रूप से बसल ये| होनहार विरवान के होत चिकने पात के मूल रूप से चरितार्थ करैत ललित बाबु छात्र जीवन में ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग ला के स्वतंत्र भारत के राजनीती में अपन अलगे पहचान बनौलक आ संसद में कोशी बाबु के नाम आओर बिहार में कोशी पुत्र के नाम से  से प्रसिद्ध भेल|
अपन अगाध लोकप्रियता के कारण ही ललित बाबु पंडित जवाहर लाल नेहरु के प्रियजन आओर इंदिरा जी के विश्वासपात्र बैन गेलाह |
१९५२ ई. में प्रथम बेर दरभंगा- सहरसा सयुंक्त लोकसभा के संसद चुनल गेलाह | अपन ई कार्यकाल के बीच बिहार के शोक कोसी के विभीषिका से आक्रांत भेल लोगें के त्राण दिलावे के लेल पहिलुक प्रयास हिनिये करलखिन | आइयो तक हुनकर अंतिम वाणी में हम रही नै रही बिहार बैढ़कर रहते | बिहार से प्रेम करे वाला हरेक लोगें के लेल प्रेरणा के कम कैर रहल ये |
बिहार के साथ साथ भारत के निरंतर सेवा में लागल ललित बाबु के मानवीय, राजनितिक आऔर सामाजिक अ चारित्रिक गुण के
याद में बलुआ बाज़ार में हुनकर समाधी स्थल पे ०३ जनवरी के बलिदान दिवस के अवसर पे बड निक जोकां लोगेन सब इक्कठा होए के हुनकर सपना के साकार करबाक लेल वचन आ श्रद्धासुमन अर्पित करलक | ओना जे कहियो ललित बाबु मिथिला के ओ चमकैत सितारा रहलखिन जिनका कोई नै बिसर सके ये @@@@@ झाजी