गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

नायिका क बाट तकैत मैथिली रंग मंच

नीलू कुमारी / सुनील कुमार झा

मैथिली रंग-मंच पर महिलाक स्थिति पहिने से बेहतर भेल अछि, मुदा एखनो एकरा बेहतर नहि कहल जा सकैत अछि। मैथिली रंगमंच आइ अपन उन्‍नतिक बाट पर अछि। मैथिली नाटकक मंचन एकटा काल अंतराल मे देखबा लेल भेट रहल अछि। पुरान डीह जरूर नष्‍ट बा कमजोर भ गेल, मुदा नवका दलान अपन भूमिका स मैथिली नाटकक भविष्‍य कए प्रकाशवान केने अछि। एहन मे मैथिली नाटक मे महिला क भागीदारी आ योगदान पर चर्च आवश्‍यक भ गेल अछि। आइ जेना आन भाषाक नाटक मे महिला क भागीदारी देखबा मे भेट रहल अछि, ओहि अनुपात मे मैथिली मंच पर महिला क उपस्थिति एखनो बहुत कम अछि। किछु महिला जे मंच तक पहुंचलथि अछि ओ टीवी आ सिनेमा दिस बेसी सक्रिय भ गेल छथि। नव कलाकार कए सेहो टीवी चैनल बझेबा मे लागल रहैत अछि, एहन मे मैथिली नाटक नीक नवोदित कलाकार क सदिखन बाट तकैत आयल अछि आ एखनो ताकि रहल अछि।

किया नहि अछि नीक स्थिति :
महिलाक स्थिति त अन्यान्यभाषक रंगमंच पर सेहो नीक नहि अछि मुदा मैथिली सबस पाछु अछि। अन्यान्य भाषक महिलाकर्मी द्वेष भावना स ऊपर उठि समूह क संग काज करैत आगाँ बढैत रहलीह ताहि लेल हुनकर स्थिति मैथिली स नीक अछि। मिथिला मे जे महिला हिम्मत क कए एक्को डेग बढाबैत छथि त आन सब हुनका पकैड़ि कए दू डेग पांछा कए दैत अछि। समूह भावनाक सर्वथा आभाव त अछि संगहि सामाजिक प्रतारणा आ उलहन हुनकर मनोबल कए आर तोड़ि कए राखि दैत अछि। मैथिली रंगमंच पर महिला क उपस्थिति तखने बढत जखन महिला व्यक्तिगत स्वार्थ स ऊपर उठि समूह भावना मे काज करैत आ हुनकर घरक लोक सब आ समाज सेहो हुनकर एही काज कए सराहना करत।
नाटक मे मिथिलानी : मैथिली रंगमंच पर महिला क आधारित कतेको नाटक लिखल गेल आ मंचन कैल गेल मुदा महिलाक स्थिति मे कोनो सुधार नहि क सकल। फेर चाहे ओ 1905 मे जीवन झाक लिखल ‘सुन्दर संयोग’ हो वा गोविन्द झाक बसात, कनिया-पुतरा, मधुयामिनी या सातम चरित्र, ओ फेर जगदीश प्रसाद मंडलक लिखल ‘मिथिलाक बेटी’ हो वा झामेलियाक बियाह, बेचन ठाकुर क बेटीक अपमान वा छिनारदेवी हो, आनंद झाक धधायत नबकी कनियाक लहास, सबटा मे महिलाक चरित्र कए केंद्र मे रखाल गेल अछि। बहुत रास नाटक क मंचन सेहो भेल छल मुदा महिलाक कमी क कारण कतेक नाटक मे महिला कलाकार क भूमिका पुरुष केलथि। मुदा समय क संग किछु माहौल बदलल आ मैथिली रंगमंच पर महिलाक खगता कम होइत गेल।

निर्देशन मे सेहो :
मैथिली रंगमंच पर महिलाक निरंतरता लेल रंगमंचक निर्देशक सेहो महती भूमिका निभा रहल छथि। ओ नहि केवल महिलाक रंगमंचक सकारात्मक पक्ष स अवगत करा रहल छथि बल्कि हुनकर प्रतिभा कए बुझैत हुनकर भीतरक कलाकार कए सेहो जगा रहल छथि। ओना रंगमंच पर जे महिला स्थिति आइ सकारात्‍मक रूप स बढल अछि तहि मे सबस बेसी योगदान निर्देशक सब कए जाइत अछि। प्रकाश झा सन किछु निर्देशक समाज स लड़ि कए उलहन उपराग सुनि कए रंगमंच स महिला कए जोडि रहल छथि। एही कड़ी मे श्‍याम भाष्‍कर, संजयजी, अक्‍कू, बेचन ठाकुर आदि निर्देशक क नाम सेहो प्रमुखता स लेल जा सकैत अछि। इ सब नित-प्रतिदिन महिला कलाकार कए बढ़ावा द रहल छथि। आइ महिलाक रंगमंच स सिनेमा दिस झुकाव एहि निर्देशक सबहक सबस पैघ सफलता आ चिंता दूनू अछि।
मैथिली रंगमंच पर महिलाक : एहि संबंध मे एखन धरि कोनो तथ्य परक सूचना त नहि अछि मुदा वरीष्ठ रंगकर्मी आ साहित्यकार विभूति आनन्द लिखैत छथि जे हुनकर गाम शिवनगर, जिला मधुबनी मे पहिल बेर 25 अक्टूबर, 1956 मे एकटा मैथिली नाटक महाराणा प्रताप क मंचन भेल छल, जाही मे दूटा मैथिल महिला कलाकार मंच पर उतरल छलीह। सोनादाइ आ सुधा कण्ठ नामक महिला मैथिली रंगमंचक इतिहास कए एकटा नव आयाम देलथि। मैथिली रंगमंच पर महिलाक ई संभवत: पहिल पदार्पण छल। ओकर बाद 1958 मे सुभद्रा झा मैथिली रंगमंचक इतिहास मे एकटा सशक्त हस्ताक्षर भेलीह जे बाद मे जा कए मीलक पाथर साबित भेलीह। ओना त भंगिमा आ अरिपण आदि रंगमंच पर अनके महिला कलाकार उपस्थित भेलीह, जाही मे प्रेमलता मिश्र ‘प्रेम’ सर्वाधिक उल्लेखनीय छथि। कलकत्ता मे सेहो अनेक बेर कतेक महिला कलाकार एलीह, कतेको त मैथिल नहिंयो रहैत मैथिली सीखी रंगमंच पर एलीह आ हुनका देखि बहुतरास महिलाक झुकाव एही दिशा मे भेल आ हुनके सबहक प्रयास स एही शीर्ष पर पहुंचलनि। आइ मैथिली रंगमंच महिलाक उपस्थिति स भरल पुरल अछि आ दिन दूना राति चौगुना, उतरोत्तर वृद्धि कए रहल अछि।
सामाजिक परंपरा रोकि रहल अछि बाट : मिथिला मे महिलाक अर्थ होएत अछि एक हाथ घोघ दोसर हाथ बच्‍चाक आंगुर। एहन स्त्री जे उम्र धरि अपन घरक चौखट नहि नांघने होए। एक त मिथिला मे स्त्रीक लेल कतेक सामाजिक धारणा आ दोसर नारीक प्रति पूर्वाग्रह हुनका अपन चौखट स पार नहि आबी दैत छैक दोसर सामाजिक उलहन आ अनुराग स ग्रसित भ मन भेला पर सेहो नहि आबि सकैत अछि। अखनो कतेक रास मिथिलानी प्रतिभा रहितो जे अपन घरक चौखट नहि नांघि पबैत अछि तकर सबसे पैघ कारण अछि हमर संस्कार आ सामजिक बंधन क देखावा। मुदा तखनो बदलैत जमानाक संग मिथिला बदलि रहल अछि आ मिथिलानी आब सेहो सशक्त भ रहल छथि। आब ओ नहि खालि अपन घरक चौखट नांघि कए सार्वजानिक मंच पर आबि रहल छथि बल्कि मंच पर स्थापित सेहो भ रहल छथि।
की अछि संभावना : संभावना क सवाल पर ढेर रास मिथिलानी जे मैथिली रंगमंच स जुडल छथि एक स्वर मे कहैत छथि जे “मैथिली रंगमंचक पर महिलाक स्थिति आब सुदृढ़ अछि आ दिन प्रतिदिन एही मे उतरोत्तर विकास भ रहल अछि। मिथिलानी आब रंगमंच स ऊपर उठि सिनेमा मे सेहो अपन भविष्य बना रहल छथि। मुदा ई मैथिली रंगमंचक दुर्भाग्य अछि जे एखन धरि महिला कलाकार पूर्ण रूप स व्यावसायिक रंगमंच क हिस्‍सा नहि भ सकलथि अछि। जे हिनकर विकासक क्रम मे सबसे पैघ रोड़ा अछि। कोनो कलाकारक स्थिति तखने सुधरत जेखन ओ व्यावसायिक होएत। रंगमंच पर खाली फ़ोकट क मनोरंजन आ समय बितेबाक साधन मात्र बुझला स कलाकारक विकास कखनो नहि होएत। संगठन क संग निर्देशक सब कए सेहो एही मे सहयोग करबाक चाही। मैथिलानी तखने आन भाषा-भाषाई रंगमंच संग डेग स डेग मिला कए चलि सकतीह अछि जखन ओ व्यावसायीकरण क हिस्‍सा बनतीह।

साभार - इसमाद (www.esamaad.com)

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