गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

की विलुप्त भ जाएत “मैथिली”

सुनील कुमार झा
सुनबा मे अजीब सन लागि सकैत अछि आओर शायद कनि कटू सेहो लागि सकैत अछि मुदा भारतीय जन भाषाई सर्वेक्षण क पहिल रिपोर्ट स त किछु एखने प्रतीत भ रहल अछि। करीब तीन सौ स बेसी भारतीय भाषा दम तोडि चुकल अछि। किछु भाषा आईसीयू मे पडल अपन अंतिम साँस गिन रहल अछि। मुदा मैथिली क स्थिति आन भाषा स विपरित अछि एकरा लगातार तोडल जा रहल अछि। एहि दिस मिडिया क ध्यान त नहिये अछि पश्चिमी सभ्यता क रंग मे रंगल समाज सेहो अनभिज्ञ भ गेल अछि। भाषा मानव संचार क मूल आधार अछि, मुदा फेर इ सेहो लगैत अछि जे एहि तरह क निर्मोही दृष्टि स जेना 2150 स बेसी समृद्ध भाषाई क्षेत्र वाला इ देश मे एकर कोनो महत्व नहि रहत।
आइ स किछु 80 वर्ष पहिने भारत क पहिल भाषाई सर्वेक्षण भेल छल। अंग्रेज अधिकारी जोर्ज ग्रियर्सन क अगुवाई मे भेल सर्वे क अनुसार मैथिली बिहार आओर आजुक झारखण्ड मे प्रमुखता स पसरल भाषा छल। जेकरा मानवी स्वार्थ आओर राजनैतिक कलह क कारण विभिन्न भाषा (जेकि क्षेत्र विशेष क आधार पर विकसित कैल गेल) मे बांटल जा रहल अछि। एकटा अखंड मैथिली तोडि-तोडि कए अंगिका, बज्जिका आओर न जानि की की बनेबाक प्रयास कैल गेल। ओना ग्रियर्सन क बाद एहि भाषा क सुध लेनिहार कियो नहि भेलाह, किछु छिटपुट काज भेल, मुदा राजनैतिक आस्थिरता आओर साहित्‍य मे कलह क कारण ओ कोनो प्रभाव नहि छोडि सकल। आब करीब आठ दशक बाद भारतीय जन भाषाई सर्वेक्षण ( पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ़ इंडिया) भाषा पर एक बेर फेर गंभीर काज केलक अछि। इ छह खंड मे अपन पहिल रिपोर्ट प्रकाशित केलक अछि, जे कि भारतीय भाषा क किछु अनछुअल पहलु कए उजागर करैत अछि। सर्वे क अध्यक्ष गणेश देवी क अनुसार भारत क 20 प्रतिशत भाषा विलुप्त भ चुकल अछि। एखन धरि केवल ग्यारह राज्‍य मे भेल सर्वेक्षण क इ परिणाम अछि। एहन मे इ अपूर्ण रिपोर्ट कहैत अछि जे करीब 310 स बेसी भाषा विलुप्त भ चुकल अछि आ छह सौ स बेसी भाषा अपन अंतिम पड़ाव मे अछि। इ सब देख सुन कए लगैत अछि जे कहीं अगिला नंबर अपन त नहि? अटल सरकारक अथक प्रयास क फलस्वरूप मैथिली संविधान क आठम अनुसूची मे जगह त पाबि लेलक मुदा राज्‍य सरकारक बेरुखी आ मैथिली कए खंडित करबाक कुचक्रक मे भागीदार बनि कहीं हम एहि भाषा कए लुप्‍त करबाक काज त नहि करए जा रहल छी।
जनगणना क अनुसार सेहो भारतीय भाषा क ग्राफ देखब त ओ सेहो कम नहि चौकायत, 1961 क जनसँख्या क अनुसार 1652 मातृभाषा दर्ज कैल गेल अछि, जे 1971 क जनगणना तक केवल 109 रहि गेल। इ आंकडा शर्मनाक कहल जा सकैत अछि। मैथिल समाज मे पसरि रहल बहुभाषी संस्‍कृति क कारण बिहार-झारखण्ड सन गढ़ मे सेहो लोक अपन मातृभाषा हिंदी दर्ज करा रखने छथि, जखनकि मैथिली सूची स गायब करि देल गेल। आइ स्थिति इ भ चुकल अछि जे हमर बीच भाषाई अंतराल एतबा बढि गेल अछि जे हम कोनो भाषा (अपन मातृभाषा त कए) क एक वाक्य पूरा-पूरा आओर शुद्ध-शुद्ध लिख या बाजि नहि सकैत छी।
भाषा क सम्बन्ध मे भेट रहल लगातार जानकारी कही इ चेतावनी त नहि द रहल अछि जे अगिला नंबर हमरे छी। की मैथिली सेहो इतिहास बनि कए रहि जाएत, कही एहन त नहि जे मैथिली क संबंध मे कहल जाए जे इ लुप्‍त भ गेल जखन कि विभिन्‍न रूप मे इ समाज मे अपन यात्रा जारी रखने रहे। जाहि रूप मे मैथिली कए तोडल जा रहल अछि ओहि मे कोनो संदेह नहि जे मैथिली क अस्तित्‍व रहितो कहल जाए जे इ भाषा कहियो अस्तित्‍व, चर्चा आओर चलन मे मौजूद छल ! कनि सोचियउ…?

“मैथिल भ कए जे नहि बजय मैथिली”
” मोन होइत अछि हुनकर कान पकडि कए अईंठ ली”

साभार - इसमाद  ( www.esamaad.com )

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