मंगलवार, 10 मई 2011

ग़ज़ल

आब मनुखे मनुखक की देत 
जे दए बला ये ओ गोसाँय देत  

सुनबै ते सुनु
सच के बोल केहन होए ये  
झूठो को ई गोप लजाs देत  
लोग से देखियो जिनगी के रंग की होए ये   
हिनकर रूप अहाँक कनाय देत  
नै पुछू हमरा से पियार की होए ये  
दुश्मनों के ई गोप हिलाs देत  

टूटल करेज सs आवाज़ नै होए ये
   
एही बात अहाँक बुझाय देत  

ग़ज़ल के लेल कोनो साज नै होए ये 
बिना आवाजो के ई मज़ाs देत  


सुदर्शन फकीर के ग़ज़ल आदमी आदमी को क्या देगा का मैथिल अनुवाद

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अपन मोनक भावना के एते राखु