बुधवार, 1 जून 2011

समस्त मैथिल के वट-सावित्री (बरसाति) के हार्दिक शुभकामना.

मिथिला आ संपूर्ण भारत के लेल एकटा महान आस्था के पर्व अछि वट-सावित्री, ई व्रत सौभाग्य आ संतान प्राप्ति के लेल कराल जाए ये। भारतीय संस्कृति में एही व्रत आदर्श नारीत्व के प्रतीक अछि। ई व्रत के तिथि आ के लेल अखनो धैर भिन्नत्ता ये। स्कन्द पुराण आ भविष्योतर पुराण के अनुसार ई व्रत ज्येष्ठ महिना के शुल्क पक्ष के पूर्णिमा के मनायल जाय के विधान अछि मुदा निर्णयामृत के अनुसार एही व्रत के ज्येष्ठ महिना के अमावस्या के मनाबै के बात कहल जाए ये। तिथि के भिन्नत्ता के राहतो एही व्रत समस्त भारत में धूम धाम से मनायल जाय ये।

पूजन विधि - ई पूजा में विवाहित स्त्री चौबीस टा बोर के फर ( आटा आ गुड के) आऔर चौबीस टा पूरी अपन आँचर में राखी के बारह पूरी आ बारह टा फर बड़ गाछ के चढ़ा दए छैक। गाछ में एक लौटा जल चढ़ा के हरदी आ रोली लगाय के फल-फुल, धुप-दीप से हुनकर पूजा करय अछि। कच्चा सुता के हाथ में लए के ओ बड़ के गाछ के बारह बेर परिक्रमा करय छैक आ हरेक परिक्रमा में ओ गाछ के एकटा चना सेहो चढ़बै छैक। आ सुता के गाछ से लपेटनाय जाय छैक

परिक्रमा पूरा भेने के बाद सब सत्यवान आ सावित्री के कथा सुनय ये। फेर बारह सुता बला एकटा माला के गाछ पर चढ़ाबै छैक आ एकटा माला गोर में पहिरे छैक। छो बेर ओ गाछ से माला बदले छैक आ फेर एकटा माला चढ़ने रहे ले दए छैक आ दोसर माला के अपन गोर में पहिरे छैक। फेर जखन पूजा समाप्त भए जाय ये तखन ओ चना आ बड़ गाछ के बौडी के तोड़ी के खाय छैक आ पानी पीबय छैक

वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष के निच्चा बैसी के विवाहित कन्या पूजा करय अछि आ व्रत के कथा सेहो सुनय अछि। कथा किछु एहन ये...
कथा  -


ई कथा सत्यवान आ सावित्री के अछि। सावित्री के भारतीय संस्कृति के एतिहासिक चरित्र मानल जाए ये। मुदा सावित्री के अर्थ वेड माता आ गायत्री सेहो होए अछि। कहल जाय ये की भद्र देश के रजा अश्वपति के कोनो संतान नै रहे। संतान प्राप्ति के लेल ओ रोज सावित्री देवी के पूजा करैत रहे आ रोज एक लाख आहुति सेहो दैत रहे। लगातार अठारह साल तक ओ लगातार ई पूजा करैत रहला जाही से प्रसन्न भए के सावित्री देवी हुनका वर देलक की राजन अहाँक एकटा तेजस्वी कन्या होएत जे अहाँ के नाम जन्म जन्मातर तक रौशन करत। किछु दिन बाद राजा के बेटी भेल, कियाकि सावित्री देवी के प्रतापे ओ बेटी जनमल रहे ताहि लेल हुनकर नाम सावित्री राखल गेल।
ओ कन्या पैघ भए के बहुत रूपवान भेलाह। योग्य वर के तलाश में हुनकर पिता लागल रहे मुदा कोनो योग्य वर नै भेटाय रहे तखन हारि के ओ अपन कन्या के अपन वर खुद खोजय ले भेजलक। सावित्री वर के तलाश में वन वन भटके लागल ताहि कर्म में तपोवन में हुनका राजा धुम्त्सेन से पुत्र सत्यवान भेटल जकरा ओ अपन पति के रूप में वरन केलखिन।
सत्यवान अल्पायु रहे मुदा वेद के ज्ञाता सेहो रहे। कहल जाय ये की विवाह से पूर्व नारद मुनि सावित्री के ई विवाह नै करय के सलाह देलक मुदा तखनो सावित्री सत्यवान से विवाह कए लेलक। विधना के लीला नीयत समय पर यमराज हुनकर प्राण लए ले आएल मुदा सावित्री के तप आ हुनकर हठ देखि के यमराज के सत्यवान के आत्मा लौटाबै ले पडल।

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