जों सभगोटे माटिक सपत्थ खाs लेब।
मनुखक बीचक देबार खसाs देब ॥
तब बनत अपन मिथिला महान ।
जों क्रान्तीक एकटा मशाल जलाs लेब॥
करेजाक आँगि जों पानि से नै मिझत।
सपत्थ, जे लहू से एकरा मिझाs देब॥
जों मिथिला माँगत ई प्राणक आहुती।
हम हँसि के अपन मुंडी चढ़ाs देब॥
हमरो ई ग़ज़ल अमर भs जाएत।
जों सभ गोटे सुर से सुर मिला लेब॥
१४ वार्णिक मात्र रदीफ़ ए
मनुखक बीचक देबार खसाs देब ॥
तब बनत अपन मिथिला महान ।
जों क्रान्तीक एकटा मशाल जलाs लेब॥
करेजाक आँगि जों पानि से नै मिझत।
सपत्थ, जे लहू से एकरा मिझाs देब॥
जों मिथिला माँगत ई प्राणक आहुती।
हम हँसि के अपन मुंडी चढ़ाs देब॥
हमरो ई ग़ज़ल अमर भs जाएत।
जों सभ गोटे सुर से सुर मिला लेब॥
१४ वार्णिक मात्र रदीफ़ ए
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
अपन मोनक भावना के एते राखु