शनिवार, 18 जून 2011

ग़ज़ल

जों सभगोटे माटिक सपत्थ खाs लेब।   
मनुखक बीचक देबार खसाs देब    

तब बनत अपन मिथिला महान   
जों क्रान्तीक एकटा मशाल जलाs लेब॥   

करेजाक आगि जों पानि से नै मिझत    
सपत्थ, जे लहू से एकरा मिझाs देब॥    

जों मिथिला माँगत ई प्राणक आहुती।   
हम हँसि के अपन मुंडी चढ़ाs देब
॥    

हमरो ई ग़ज़ल अमर भs जाएत    
जों सभ गोटे सुर से सुर मिला लेब॥   

१४ वार्णिक मात्र रदीफ़ ए


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