शुक्रवार, 3 जून 2011

ग़ज़ल

हमर अरमान जरि गेल आय कोहबर घर में   
हमर मुसकान मरि गेल आय कोहबर घर में   

जे फुलवारी हम सजेने रही आय बीस बरख सों  
तकर सब फुल झरि गेल आय कोहबर घर में  

कहलक रहे बरसाइतक भार हमहीं आनब 
बाटे तकैत थकि गेल आँखि आय कोहबर घर में  

मधुश्रावणीक सब अरहुल निरमाल ये बनल  
टेमी के सब फोंका सुखि गेल आय कोहबर घर में  

समदिया के आनल पढ्लों जे विदागरी के समाद  
बहुत दिनक बाद कानलों आय कोहबर घर में 

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अपन मोनक भावना के एते राखु