शनिवार, 18 जून 2011

की मनायल जाए पित्री दिवस...

काल्हि पित्री दिवस अछि मने फादर डे,  अंग्रेज भारत से जाएत-जाएत अंग्रेजी ते छोडि के गेबे करल संगे आधुनिकता के जे रंग चढ़ा कए चलि गेल ये शायद  आब नै लागय ये जे ओ उतरत। आब की करी आधुनिकता के दौड़ में हमरो सभ के ओकर अनुसरण करय ले पड़य ये। अंग्रेज हरेक लोग विशेष के लेल एकटा त्यौहार बनेलक ये ई नै की भारत जोंका हरेक त्यौहार सभ मिल के मनाबि। माँ के लेल मदर डे, पापा के ले फादर डे, प्रेमिका के लेल वेलेनटाइन डे फलना डे ढीकाना डे ...।
हमहूँ सभ एते विचारवान भए गेलोंउ ये की एही दौड़ में सबसे आगू रहय ले अपन पुरनका आदर्श आ त्यौहार के बिसैर गेलोंउ। अखबार खोलू ते पिताजी के गिफ्ट दए के विज्ञापन से पृष्ठ भरल
भेटत। कियो वृधाआश्रम में मिठाई बाटि रहल ते कियो सड़क परलका बुढ़बा सभहक़ मिठाई बाँटेय में लागल ये। फ़िल्मी कलाकार अपन माय बाप के गुणगान आ नेता सभ अपन माँ बाबूजी के जीवन के सुखद घटना के बतबैत नज़र आएत। सभ रेस में लागल कतेक जल्दी हम पश्चिमी सभ्यता के पकैड़ ली मुदा की फायदा....? विदेश में बेटा बालीग़ होलाs पर माय बाप से अलग रहे लागय ये मुदा एता जवान भेलो के बाद बेटा अपन बाप के कपाड़ पर बैसल रहे ये बाप अपन करेज काटि-
काटि के ओकरा पढ़ाबै ये लिखाबै ये आ अपन पारि पर खड़ा कराबै ये, जा धैर बेटा किछु बनि नै जाय हुनका अपन दम पर आगू बढ़ाबै ये खाली याह ले की हम जखन बुढ भए जिए ते ओ हमर आसरा बने हमरा मुँह में आगि दिए....। आब सवाल ई ये जब माय बाप के संग जन्म मरण के बंधन अछि तखन फादर डे आ मदर डे के कुन काज....। किया हम ई अँधा दुनिया के पाछू दौड़ रहल छी....।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अपन मोनक भावना के एते राखु