मंगलवार, 10 मई 2011

चलल चलु

बढ्नैय यs तs बढ़ल चलु
गर छुनै यs उचाई त चढ़ल चलु
हर मंजर हर तूफ़ान सs लड़ल चलु
कोनों मोती कोनो हीरा अहाँ तेज मs अप्पन जरल चलु !
हर पत्थर हर कांटा हर पीर बिन बाँटल चलल चलु
कखनो शीश नवाबू कखनो शीश झुकाबू
कखनो शीश काटनs ....... .. चलल चलु
मंजिल य सीधा पर पथ संकीर्णता स भरल परल,
य टेढ़ा- मेढ़ा, बिना मुरल चलल चलु !
गति हवा के सुगंध छटा के
घनघोर घटा के गाथा कोनो गढ़ल चलु !
लाख विघ्न हुअ लाख रूकावट
बिन माथा टेकनs चलल चलु !
राह स अपन टलू नै, भीषण ताप स जलु नै
जे पीघैल गेल से पैन छि जे नै पिघलल उ चन्दन ,
निर्मल निर्झर पर निर्जल इ निश्चल
पथ पर अहाँ निश्छल चलल चलु !

2 टिप्‍पणियां:

  1. इ कविता हम २००५ म दिल्ली म हिंदी म लिखलौं, तकरा आय अप्पन भाषा म प्रस्तुत करैत अति हर्षित छि मुदा अहाँ सब मैथिल विदूषक विशेष प्रोत्साहन चाहव

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अपन मोनक भावना के एते राखु