बुधवार, 13 अप्रैल 2011

चलूँ मीत आब लौट चलूँ...।।

चलूँ मीत आब लौट चलूँ
बूढ़ा बरगद केर बाँहों में,
पीपल  की ठंढा छाओं में
ओ दिलवाला के गाँवों में।।

जतय प्रेम के झरना बहैत होए
   आर लोग दीवाना होयत होए,
घर-घर में होली मनैत होए
और रोज दिवाली जलैत होए
 
 जतय राम-रहीम के मारि नै
गीता-कुरान हर घोर में होए,
मंदिर-मस्जिद के बेडी में
जतय लोग नै खुद के जकडल होए।।
जतय पहुनक के स्वागत में
लोगेन के दिल बिछि जायत होए,
एक दोसर के सुख-दुःख में भी,
सब मिल के हाथ बटाबैत होए।।

जतय मानवता सबसे पहिने
आर बाद में जाती आबे होए,
ओ राम राज्य के और चलूँ
चलूँ मीत आब लौट चलूँ...।।

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