शनिवार, 30 अप्रैल 2011

रुबाइ

खाड़ भए सपना नै देखबाक चाही  
सुरज से आँखि नै मिलबाक चाही  
टूटय ये भरम तs बड़ दरद होए ये   
अहाँक एही बात बुझबाक चाही   

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अपन मोनक भावना के एते राखु