शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

चलू प्रियतम लौट चली अपन गाँव...

चलू प्रियतम लौट चली अपन गाम में
ओही पिपरक ठंडा छाँव में
जतय रोटी छोट होयत अछि
मुदा हिरदय बड़ पैघ.

रोटी के दुई टुकड़ा कए के
आधा-आधा खाइत
आ लोटा भैर पैन पी के
लैत रहिये तृप्त ढकार

जमीनक बिछौना आ आकाशक ओढना सों
जतय सुतय छलिये पैर पसार
आ भा जायत छलिये
मिठ्गर स्वप्न सों द्वि चार

चलू मीत अपन वैsह ठाम
जतय पहुनक आबे से पाहिले
घोरक टांट आ दलानक मचान पर
कौआ करैत छै कांव-कांव

चलू प्रियतम लौट चली अपन गाम...

आ एता शहर में...


रोटी ते पैघ भेटय छै
मुदा मन बड़ छोट
मनुख ऊपर से व्यवहारिक अछि
आ भीतर सा बड़ ओछ

पाय के हाय-हाय अछि
एते जरुरत पर भेट
नै ते बाय-बाय अछि

एते प्रेम नै व्यापर अछि
एते शिक्षा नै अत्यचार अछि
सभ्य झलकैत छै सब
मुदा संस्कार नै अछि

चलू फेर ओही चोपाल में
हसी ठिठोली से जतय मिल के
गीत गबैत भजन गबैत
आ घंटो घोप हाँकैत

जतय देखे नै पडैत अछि
तुरते तुरत घड़ी
समय रुक जायत अछि जतय
सुख-दुःख बांटेईत भाव में

स्वर्गो के नज़ारा फीका अछि

जतय गामक मिठका पोखैर में
आबू सैर करब दुनू गोंटा
मिलकए ओतय नाव में

चलू प्रियतम लौट चली अपन गाँव...

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