शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

जुड़-शीतल केर हार्दिक शुभकामना...

सबसे पाहिले जुड़-शीतल केर हार्दिक शुभकामना, आय जुड़-शीतल छि मिथिला के लेल ई एकटा विशिष्ठ पर्व अछि। भोरे-भोर हम सुतल रहय छिए की एकाएक से कपाड पर बसिया पानि डालि देल जाय ये। जुड़-शीतल के नाम से गाम-घोर से जुडल लोग ते निक जोंका जानय ये मुदा जे गाम-घोर से दूर आ विदेश में रहय ये हुनका ई पर्व के बुझायल नै रहय ये एही में फेसबुक आ ब्लॉग बहुत मदद करय ये। कहियो ई पर्व मिथिला में बहुत जोड़-शोर मनायल जाय रहे, मुदा आब सब ई पवन पर्व के बिसरल जाय रहल ये। मूल रूप से ई पर्व में साफ़-सफाई लेल छैक ई में सब-गोटा मिली के गामक पोखर के साफ़ करय छैक आ एक दोसर पर कादो पानि फेकय छैक बड़ा मजा आबय ये ई खेल में. याह मौका पर एकटा गीत याद आबी रहल ये...
 ।।कोन नगर स एले तू बटोहिया , प्रीतम रहै छथि तोरे देश रे।।
।।विरह के राग अल्पे चिरैया, ल जो तू जुड़ शीतलक सनेश रे।।
कहल जाय ये की मिथिला से जुडल पर्व में कोनो नै कोनो तर्क जरुर छुपल रहय ये, याह पर्व के साथ भी ई ये की गामक पोखर ते साफ़ भए ही जाय ये साथ-साथ भानस घोर के एक साँझ के आराम भेट जाय ये कियाकि याह दिन हम सब बसिया खाना खाय छि खास कए के बड़ी आ भात। जुड़ शीतल चैत्र संक्रांति के परात भए के मनायल जाय ये। एही से जुडल मान्यता ई ये की जुड़-शीतल दिन जुड़ेने से भैर साल गरमी कम लागय ये आ कपाड शांत रहय ये। बसिया भात आ बड़ी खेने से जोंड़ीस सेहो नै होए अछि। एही दिन भोरे-भोर बहिन सब बसिया पानि लाsके पूरा सड़क,अंगना पटाबै छैक, कहल जाय ये जे एही से भाई के उमर बढ़य ये। हम ते भोरे भोर बड़ी भात खाय लेलों ये अहों सब खाओ... जय-मिथिला,जय मैथिल।।

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